आखिर क्यों किया परशुराम ने अपनी ही मां का वध
शास्त्रों के अनुसार, भगवान परशुराम का जन्म वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हुआ था। इस दिन को लोग अक्षय तृतीया के नाम से भी जानते हैं।
ऐसा माना जाता है कि परशुराम का जन्म प्रदोष काल के दौरान हुआ था और इसलिए जिस दिन प्रदोष काल के दौरान तृतीया होती है उस दिन को परशुराम जयंती के रूप में मनाया जाता है.
परशुराम रेणुका और सप्तर्षि जमदग्नि के पुत्र थे. वह द्वापर युग के अंतिम समय तक जीवित रहे थे. परशुराम को हिंदू धर्म के सात अमर लोगों में से एक माना जाता है.परशुराम ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए घोर तपस्या की थी जिसके बाद उन्हें वरदान के रूप में एक फरसा मिला था.
पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान परशुराम माता रेणुका और ॠषि जमदग्नि की चौथी संतान थे. वे आज्ञाकारी होने के साथ-साथ उग्र स्वभाव के भी थे. भगवान परशुराम को एक बार उनके पिता ने आज्ञा दी कि वो अपनी मां का वध कर दे. भगवान परशुराम बेहद आज्ञाकारी पुत्र थे. उन्होंने अपने पिता के आदेशानुसार तुरंत अपने परशु से अपनी मां का सिर उनके धड़ से अलग कर दिया.
यह देखकर ऋषि जमदग्नि अपने पुत्र से बेहद प्रसन्न हुए और भगवान परशुराम के आग्रह करने पर उनकी मां को पुन: जीवित कर दिया. आइए जानते है इसके पीछे की पूरी कहानी-
एक बार परशुराम की माँ रेणुका (Parshuram Ki Maa Ka Naam) आश्रम के पास नदी में स्नान करने गयी थी। वहां पर उन्होंने राजा चित्ररथ को अन्य अप्सराओं के साथ स्नान करते तथा क्रीड़ा करते हुए देखा। राजा चित्ररथ दिखने में बहुत आकर्षक तथा सुंदर शरीर वाले थे। अन्य अप्सराओं के साथ उनकी क्रीड़ा को देखकर रेणुका का मन भी प्रफुल्लित हो उठा तथा वह उसे देखती रही। इसी कारण उन्हें स्नान करके वापस आश्रम में आने में देरी हो गयी।
जब रेणुका स्नान करके वापस आश्रम लौटी तो उसके हाव भाव बदले हुए थे तथा उसके मन में अभी भी वही दृश्य चल रहा था। चूँकि ऋषि जमदग्नि एक महान तपस्वी थे तो उन्होंने अपने तप के बल पर संपूर्ण बात का पता लगा लिया तथा रेणुका का मन (Renuka Yellamma Jamadagni Katha) भी पढ़ लिया।
उन्होंने अपने पुत्रों को आदेश देते हुए कहा कि अपनी मां का सिर काट दो. उनकी इस आज्ञा का पालन किसी भी पुत्र ने नहीं किया लेकिन जब पिता ने ये आदेश परशुराम को दिया तो उन्होंने पिता की आज्ञा का पालन करते हुए अपनी मां का सिर काट दिया.
यह देखकर परशुराम के पिता जमदग्नि अत्यधिक प्रसन्न हुए तथा परशुराम को स्नेहपूर्वक कोई वरदान मांगने को कहा। परशुराम ने समझदारी से काम लेते हुए अपने पिता से तीन वर मांगे। पहले वर में उन्होंने अपनी माँ को पुनः जीवित करने को कहा, दूसरे वर में उन्होंने माँगा कि उनकी माँ को इस चीज़ की स्मृति न रहे तथा तीसरे वर में उन्होंने अपने तीनो भाइयों का विवेक व बुद्धि मांग ली।
ऋषि जमदग्नि अपने पुत्र परशुराम की समझदारी से बहुत प्रसन्न हुए तथा उन्होंने उसे तीनों वर प्रदान कर दिए। इसके पश्चात सब कुछ फिर से सामान्य हो गया तथा परशुराम जी की माँ पुनः जीवित हो उठी।
ऋषि जमदग्नि अपने पुत्र परशुराम की समझदारी से बहुत प्रसन्न हुए तथा उन्होंने उसे तीनों वर प्रदान कर दिए। इसके पश्चात सब कुछ फिर से सामान्य हो गया तथा परशुराम जी की माँ पुनः जीवित हो उठी।