ऋषिकेश : साकेतवासी श्री जगद्गुरु रामानंदाचार्य स्वामी श्री हंसदेवाचार्य जी महाराज की चतुर्थ पुण्य तिथि पर गुरुपूजन, श्रद्धांजलि समारोह और हरिनाम संकीर्तन के साथ याद किया गया शिष्य और भक्तों ने अपने प्रिय गुरु को

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ऋषिकेश : गुरु को अपना शिष्य प्रिय होता है और भक्त भी. दोनों ही गुरु के लिए आजीवन एक ऊर्जा और भक्ति, प्रेरणा और रास्ता दिखने वाले के तौर पर शक्ति देते हैं गुरु. बुधवार को मणि राम मार्ग स्थित जगन्नाथ आश्रम में गुरु को याद किया गया. साकेतवासी श्री जगद्गुरु रामानंदाचार्य स्वामी श्री हंसदेवाचार्य जी महाराज की चतुर्थ पुण्य तिथि के अवसर पर शिष्य और भक्त एकत्रित हुए.प्रिय शिष्य महंत लोकेश दास महाराज के सानिध्य में शानदार तरीके से संतों के साथ गुरुपूजन हुआ. फिर श्रद्धाजंलि सामारोह और हरिनाम संकीर्तन भी किया गया. शिष्य और गुरु की अध्भुत प्रेम का दिन था. गुरु ने शरीर तो छोड़ दिया लेकिन शिष्य के लिए उनके गुरु महाराज हमेशा उनके साथ रहते हैं. उनके आस पास रहते हैं. भक्त दिल्ली, हरियाणा से लेकर मथुरा वृंदावन तक के पहुंचे थे. सैकड़ों भक्तों ने प्रसाद ग्रहण किया. गुरु को प्रणाम किया. उनके बताये हुए रस्ते पर चलने के लिए अपने आप को प्रेरित किया. शिष्य के तौर पर गद्दी पर विराजमान महंत लोकेश दास महाराज ने कहा हमारे लिए हमारे गुरु हमेशा साथ हैं हमारे आस पास हैं. वे हमेशा हमें आशीर्वाद देते रहते हैं, हमें रास्ता दिखाते रहते हैं. हमें ख़ुशी है ऐसे गुरु सबको मिलें. कई भक्त हरियाणा के रेसवार्डी क्षेत्र, नारनौल से भी आये हुए थे. सब लोग खुश थे वे अपने गुरु जन के आश्रम में आये हैं. उनका आशीर्वाद लेने. आश्रम में इस दौरान, महामंडलेश्वर दयाराम दास जी महाराज,महंत प्रमोद दास जी महाराज, विष्णुदास जी महाराज, रवि प्रपन्नाचार्य जी महाराज समेत कई संत मौजूद रहे और ऋषिकेश महापौर अनिता ममगाईं भी रहीं मौजूद. साथ ही सैकड़ों भक्त भी मौजूद रहे.

ऐसे थे गुरु महाराज–
आपको बता दें, चार वर्ष पूर्व 22 फ़रवरी 2019 को सड़क हादसे में उन्नाव में उनका निधन हो गया था. वे कुम्भ से लौट रहे थे. लखनऊ-आगरा एक्सप्रेस-वे पर सड़क हादसा हुआ था. वह प्रयागराज में चल रहे कुंभ से हरिद्वार वापस लौट रहे थे. हादसा बांगरमऊ कोतवाली क्षेत्र में हुआ था. हादसे में वह गंभीर रूप से घायल हो गए थे. आनन-फानन में उन्हें लखनऊ ट्रामा सेंटर में भर्ती कराया गया, जहां इलाज के दौरान उनका निधन हो गया था. वे अखिल भारतीय संत समिति के अध्यक्ष भी थे. वैष्णव संप्रदाय के सर्वोच्च पद पर आसीन जगद्गुरु रामानंदाचार्य स्वामी हंसदेवाचार्य महाराज अध्यात्म जगत के प्रणेता थे। उन्होंने जीवनभर सनातन धर्म के उच्च मानदंडों का अनुसरण किया।
वह हरिद्वार के संत जगत के अलावा सामान्य लोगों के बीच भी बेहद लोकप्रिय थे। अकेले हरिद्वार में ही उनके शिष्यों की संख्या हजारों में है। भीमगोड़ा के जगन्नाथ धाम में उनकी देह लोगों के दर्शन और श्रद्धांजलि देने के लिए रखी जाएगी। बड़ी संख्या में देशभर से उनके अनुयायी हरिद्वार पहुंचने लगे हैं। बताया जाता है कि कई बड़े संत और नेता भी उनकी अंत्येष्टि में शामिल होंगे। स्वामी हंसदेवाचार्य को खड़खड़ी श्मशान घाट पर शाम चार बजे मुखाग्नि दी जाएगी। स्वामी हंसदेवाचार्य का जन्म हरियाणा में झज्झर जिले के दुजाना गांव में हुआ था। हंसदेवाचार्य जब तक रामानंदाचार्य पद पर आसीन नहीं हुए थे, जब तक हरिद्वार में उन्हें स्वामी हंसदास के नाम से जाना जाता था। बालपन में ही वे हरिद्वार चले आए और चेतन ज्योति विद्यालय में शिक्षा ग्रहण की। हरिद्वार में नगर पालिका अध्यक्ष रहे सतपाल ब्रह्मचारी उनके बाल सहपाठी हैं। स्वामी हंसदास ने अनेक गुरु धारण किए। वे ऋषिकेश के स्वामी जगन्नाथ के शिष्य बने। बाद में जगन्नाथ धाम के नाम से उन्होंने कई आश्रम बनाए। स्वामी हरिदास से उन्होंने मंत्र दीक्षा ली थी। स्वामी पूर्णनाथ और कृष्णानंद भी उनके गुरु थे। स्वामी हंसदास पहले उदासियों के बड़े अखाड़े से जुड़े और उस अखाड़े के महामंडलेश्वर बने। बाद में वैष्णव संप्रदाय अपनाकर स्वामी हंसदास बैरागी अणियों से जुड़ गए।उनका नाम हंसदेवाचार्य हो गया। वैष्णव संप्रदाय ने वर्ष 2010 के हरिद्वार कुंभ में उन्हें अपना सर्वोच्च पद जगद्गुरु रामानंदाचार्य प्रदान किया। स्वामी हंसदेवाचार्य की संघ परिवार में गहरी पैठ थी। देश की जानी-मानी राजनीतिक हस्तियां उनसे आशीर्वाद लेने हरिद्वार आती थीं। राम जन्मभूमि के आंदोलन में स्वामी हंसदेवाचार्य का योगदान भुलाया नहीं जा सकता। प्रयागराज में हुई विहिप की धर्म संसद में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।राम मंदिर निर्माण के लिए वह हमेशा सक्रिय रहे।
संत समाज को एकजुट करने में उनकी अहम भूमिका रहती थी। उन्होंने सनातन धर्म और भारतीय संस्कृति को विश्व पटल पर एक नए रूप में प्रस्तुत किया। अपनी तप और विद्वता के माध्यम से उन्होंने समाज से कुरीतियों को मिटाकर सदैव एक नई दिशा प्रदान की।