क्या है गंगूबाई की असली कहानी, वेश्यावृति से लेकर डॉन और सोशल वर्कर तक का सफर
संजयलीला भंसाली के डायरेक्शन में बनी फिल्म गंगूबाई काठियावाड़ी’ रिअलीज होने से पहले विवादों से घिर चुकी है।
गंगुबाई के गोद लिए बेटे राव जी का कहना है कि इस फ़िल्म की वजह से हमको समाज मे रहना दूभर हुआ है , हमारी माँ की भूमिका को गलत रूप से पेश किया गया है । उनका कहना है कि गंगूबाई एक सोशल वर्कर थी जो वेश्याओं के लिए और अनाथ बच्चों के लिए काम करती थी।
आईये जानते है गंगूबाई की कहानी को — गंगूबाई का जन्म गुजरात के काठियावाड़ नामक स्थान पर हुआ था। 1939 में जन्मी गंगूबाई का परिवार बड़ा ही रसूकदार था। काफी इज्जतदार परिवार से तालुक रखती थी गंगूबाई। अपने माँ बाप की एक लौती औलाद थी। उस समय जब लड़कियां ज्यादा नही पढ़तीं थी फिर भी माता-पिता ने अपनी बेटी को पढ़ाया। लेकिन गंगूबाई का सपना हेरोईन बनने का था। रमणीक नाम का लड़का गंगूबाई के पिता का अककॉउंटेड था। जो मुम्बई का था। रमणीक के साथ 16 साल की उम्र में गंगूबाई ने भाग कर शादी कर ली थी। शादी के बाद रमणीक गंगूबाई को मुम्बई ले आया । वहां उसने 500 रुपये में गंगूबाई को कोठेवाली को बेच दिया । वो महिला मशहूर स्थान कमाठीपुरा रेड लाइट एरिया की एक कोठे वाली थी।
यही से शुरू हुआ गंगूबाई का संघर्ष, मुंबई के रेड लाइट एरिया कमाठीपुरा में जब गंगूबाई सबसे अनजान थी, उस समय उसने अपनी परिस्थितियों से समझौता भी किया था. तब वहां पर एक वहशी दरिंदा जिसका नाम शौकत खान था उसने गंगूबाई के साथ जबरदस्ती की और पूरी रात उसको इस कदर नोच खाया कि उसकी हालत बहुत ज्यादा खराब हो गई। फिर शौकत खान गंगूबाई को बिना पैसे दिए ही वहां से चला गया। उस समय गंगूबाई की इतनी ज्यादा बुरी हालत हो गई थी कि उन्हें तुरंत अस्पताल में दाखिल कराया गया। जब वह पूरी तरह से ठीक हो गई तब उसने उस आदमी के बारे में पूरी जानकारी निकालने के लिए खुद ही प्रयास किया. तब उसे पता चला कि शौकत खान नाम का वह व्यक्ति मशहूर क्रीम लाला मुंबई का डॉन के पास काम करता है।
करीम लाला के पास जाकर, गंगूबाई ने शौकत खान की वो हरकत बताई. उसके बाद करीम लाला ने उसकी रक्षा करने का प्रण ले लिया। करीम लाला ने शौकत खान को गंगू भाई के साथ किए जाने वाले अत्याचार के लिए बेहद कड़ी सजा दी। गंगूबाई ने करीम लाला को राखी बांध कर अपना मुंह बोला भाई बना लिया। उसी दिन से गंगूबाई को कमाठीपुरा में डॉन के नाम से भी जाना जाने लगा। मुंबई के लोग जितना करीम लाला से डरते थे उतना ही वे गंगूबाई से भी खौफ खाने लगे। धीरे धीरे वे प्रचलित होती गई और उन्होंने रेड लाइट एरिया में काम करने वाली वेश्याओं के लिए भी बहुत से सकारात्मक काम किए।
गंगूबाई का कहना था कि यदि मुंबई में रेड लाइट एरिया में काम करने वाली औरतें ना हो तो मुंबई की औरतों का घर से बाहर निकलना मुश्किल हो जाएगा। भले ही गंगूबाई वेश्यावृत्ति में पूरी तरह से रंग चुकी थी परंतु वह अपने यहां पर किसी भी ऐसी महिला को नहीं रखती थी जिसका वहां पर रहने का या काम करने का मन ना हो।