गंगा दशहरा पर उमड़ी आस्था का सैलाब श्रद्धालुओं ने लगाई गंगा में आस्था की डुबकी
ऋषिकेश -आज गंगा दशहरा के पर्व पर श्रद्धालुओं ने लगाई आस्था की डुबकी सुबह से शाम तक गंगा में स्नान करते नजर आए श्रद्धालु शहर में लगा रहा घंटों का जाम जिसके कारण लोगों को आने जाने में भी परेशानियों का सामना करना पड़ा।
बृहस्पतिवार गंगा दशहरा पर श्रद्धालु सुबह से शाम तक स्नान करते नजर आए पहला स्नान सुबह के 4:00 बजे का था स्नान करने के बाद पूजा अर्चना की तथा भगवान से परिवार को खुशहाल बने रहने की मनोकामना कर दान दक्षिणा भी दिया।
वहीं शहर में गंगा दशहरा के कारण जाम का तांता लगा रहा इस जाम को हटाने में पुलिस अपने कार्यों को बखूबी निभा रहे थे त्रिवेणी घाट के अंदर पार्किंग में अत्यधिक गाड़ी होने के कारण बहन को पारी में ले जाने को सख्त मना कर रहे थे तथा लोगों को अपना गाड़ी रोड पर ही लगाने को मजबूर थे।
पौरणिक कथा हम गंगा दशहरा क्यों मनाते हैं?
पौराणिक कथा के अनुसार, अयोध्या में भगवान श्रीराम के पूर्वज माने जाने वाले एक राजा भागीरथ हुआ करते थे। राजा भागीरथ को अपने पूर्वजों को मुक्ति प्रदान करने के लिए गंगा के जल में तर्पण करना था। लेकिन उस वक्त गंगा माता केवल स्वर्ग में ही निवास करती थीं। गंगा माता को धरती पर लाने के लिए राजा भागीरथ के पिताजी और दादा जी ने भी खूब तपस्या की लेकिन वे सफल नहीं हो पाए। इसके पश्चात राजा भागीरथ भी मां गंगा को धरती पर लाने के लिए हिमालय की तरफ चले गए और कठोर तपस्या करने लगे।
भागीरथ की तपस्या से प्रसन्न होकर गंगा देवी ने धरती पर आने की विनती स्वीकार कर ली। लेकिन उस समय भी एक परेशानी यह थी कि गंगा नदी का वेग बहुत ज्यादा होने के कारण यदि वह धरती पर एक भी कदम रखती तो विनाश हो सकता था। राजा भागीरथ को जब इस बात का पता चला कि भगवान शिव ही केवल गंगा के वेग को संभाल सकते हैं तो फिर वह भोलेनाथ की तपस्या में लीन हो गए। एक साल बीत गया और राजा भागीरथ पैर के अंगूठे के सहारे खड़े होकर ही भगवान शिव की तपस्या करते रहे। तब राजा की तपस्या से खुश होकर भोलेनाथ ने गंगा को धरती पर लाने की उनकी विनती स्वीकार कर ली।
इसके बाद भगवान ब्रह्मा ने अपने कमंडल से गंगा की धारा को प्रवाहित किया और साथ ही शिवजी अपनी जटाओं में उस धारा को समेटते हुए। माना जाता है कि करीबन बत्तीस दिनों तक गंगा नदी शिव जी की जटाओं में ही रहीं। इसके बाद ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को भोलेनाथ ने अपनी जटाएं खोली तब जाकर गंगा नदी पहली बार पृथ्वी पर अवतरित हुईं। फिर राजा भागीरथ ने अपने पूर्वजों का गंगा जल से तर्पण करके उन्हें मुक्ति दिलाई