चन्द्रमा अपनी उच्च राशि ‘वृष’ और अपने ही नक्षत्र ‘रोहणी’ में विराजमान होकर देगें सुहागिनों को अखण्ड सौभाग्य का आर्शीवाद…
उत्तराखण्ड टाइम्स/ करवाचौथ स्पेशल:- इस बार 24 अक्टूबर 2021 को करवा चौथ के आराध्य देव चन्द्रमा! अपनी उच्च राशि ‘वृष’ और अपने ही नक्षत्र ‘रोहणी’ में विराजमान होकर देगें सुहागिनों को अखण्ड सौभाग्य का आर्शीवाद।
सुहागिन महिलाओं के लिए करवा चौथ का व्रत का दिन बड़ा प्रिय और उत्साहपूर्ण होता है। और इस बार तो ऐसा लग रहा है, कि मानो करवा चौथ के आराध्य देव चन्द्रमा भी सुहागिन महिलाओं के उत्साह, उमंग और पति निष्ठा को देखकर उनकी अखण्ड सौभाग्य की कामनाओं की पूर्ति के लिए पूर्णता के साथ प्रकट होकर आर्शीवाद देने के लिए आतुर है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार चन्द्रमा जब रोहणी नक्षत्र और वृष राशि में गोचर करता है, तो वह अति शुभ माना जाता है। वृष राशि चन्द्रमा की उच्च राशि मानी जाती है और रोहणी चन्द्रमा का अपना नक्षत्र होता अर्थात चन्द्रमा उपरोक्त स्थिति में पूर्ण बली और शुभकारक माना जाता है। यह युति इस बार 24 अक्टूबर 2021 को घटित हो रही है। जो इस बात का सूचक है कि इस बार करवा चैथ का व्रत अति शुभ घड़ी में घटित हो रहा है। अर्थात सुहागिन महिलाओं के मनोभाव पूर्ण होने वाले हैं। क्योंकि सभी प्रकार के शुभ कार्य, व्रत, पर्व त्योहार में आदि में ग्रह, नक्षत्र की अनुकूलता का विशेष महत्व माना जाता है।
धार्मिक महत्व एवं पौराणिक मान्यताएं
अब बात आती है, कि करवा चौथ के व्रत का धार्मिक महत्व व पौराणिक इतिहास क्या है। इस सन्दर्भ में विविध-विविध मत व लोकोक्ति प्रचलित में हैं। कुछ लोेग इस व्रत की परम्परा को सती सावित्री से जोड़तेे हैं , तो कुछ लोग इस व्रत का सम्बन्ध द्रोपदी के समय सेे मानते हैं । कुल मिलाकर इस व्रत की परम्परा व इतिहास में काफी मतान्तर हैं।
लेकिन यदि हम इस व्रत के उद्देश्य की बात करें तो यह व्रत सुहागिन महिलाओं के द्वारा अपने पति की लम्बी आयु व उतम स्वास्थ्य की कामना से किया जाता है। जो सदियों से चला आ रहा है। ये बात भी सच है कि पहले यह व्रत कुछ प्रान्तों में ही प्रचलन में था, लेकिन अब भारत के ज्यादातर प्रान्तों में और विदेशों में रह रहे भारतीयों में इस व्रत का प्रचलन बहुत तेजी से बढ. रहा है।
नई पीढ़ी के लिए करवाचौथ का महत्व
करवा चौथ के व्रत के धार्मिक और पौराणिक महत्व की निःसन्देह अपनी एक विशेषता है। लेकिन यदि हम वर्तमान समय के परिपेक्ष में करवा चौथ के व्रत के महत्व को समझें, तो करवा चौथ का व्रत नई पीढ़ी के विवाहित पुरूष एवं महिलाओं के दाम्पत्य जीवन में एक उच्च आयाम, एक दूसरे के प्रति समर्पण भाव और सम्बन्धों में गहराई लाने का काम करता है। इसके साथ ही पति-पत्नी के बिगड़ते हुए सम्बन्धों मेें संजीवनी का काम भी करता है।
आज के युवक युवती पढ़े लिखे होने के साथ-साथ महत्वकांक्षी तो हैं। लेकिन अधिकांश लोगों में धैर्य एवं एक दूसरे के प्रति यानि पति या पत्नी के प्रति समर्पणता की कमी को नकारा नही जा सकता है। आये दिन आस-पास या परिजनों के बीच यह देखने में या सुनने में आता है कि अधिकांश पति-पत्नि के बीच छोटी-छोटी बातों में तकरार या मन मुटाव की स्थिति पैदा हो रही है। और ये स्थिति दिन प्रतिदिन बढ ही रही है।
पति- पत्नी के बीच बढ़ रही कटुता को कम करने एवं मधुर संबंधों की पुर्नस्थापना के लिए करवा चौथ का व्रत एक कड़ी या सूत्र के रूप में काम करता है।
इसको हम उदाहरण के साथ देख सकते हैं वैसे तो यह व्रत साल में एक ही बार कार्तिक महीने में आता है, लेकिन इस व्रत की तैयारी चर्चा परिचर्चा सुहागिन महिलाऐं कही दिन पूर्व ही प्रारम्भ कर लेती हैं। इसके अतिरिक्त बडे ही उत्साह और उमंग के साथ व्रत के लिए सौन्दर्य प्रसाधन, ऋंगार सामग्री आदि एकत्र करने में लगभग पूरा महीना व्यतीत कर लेती हैं।
यह सब किसके लिए पति की दीर्घ आयु के लिए। अब यदि किसी महिला के मन में पति के प्रति किसी कारणवश क्रोध, द्वेष, कटुता या नाराजगी होगी तो वह स्वतः ही कम होकर स्नेह में बदल जायेगी। वहीं दूसरी तरफ पुरूष अपनी पत्नी को देखता है कि वह बड़े ही उत्साह और उमंग के साथ करवा चैथ के व्रत की तैयारी कर रही है। तो उसके मन में यदि पत्नी के प्रति क्रोध, द्वेष, कटुता या नाराजगी होगी तो वह भी मनमुटाव को भुला देना चाहेगा।
इस प्रकार करवा चौथ के व्रत के कारण उन लाखों करोडों लोगों के दाम्पत्य जीवन मेें मधुरता आना स्वाभाविक है। जिनके दाम्पत्य जीवन कलह और कटुता के कारण ग्रसित है। वहीं दूसरी तरफ एक दूसरे के प्रति सामान्य व्यवहार वाले पति-पत्नि के दाम्पत्य जीवन में भी इस व्रत के माध्यम से प्रगाढता आ जाती है। कुल मिलाकर यह व्रत होता तो एक दिन का है, लेकिन इस व्रत के माध्यम से पति-पत्नि साल भर से चलने वाले मतभेदों को भुलाकर मधुर संबंधों को पुनःस्थापित कर लेते हैं।
वस्तुतः यह व्रत प्रत्यक्ष रूप से तो पति की आयु वृद्धि, अखण्ड सौभाग्य की कामना से सुहागिन महिलाओं द्वारा लिया जाता है। लेकिन अप्रत्यक्ष रूप से करवा चौथ का व्रत पति-पत्नी के बिगड़े हुए रिश्तों को सँवारने की भूमिका निभाता है।
लेखक- आचार्य पंकज पैन्यूली (ज्योतिषी एवं आध्यात्मिक गुरु)