चालदा महाराज की डोली महासू देवता के मंदिर में पहुंची जहां लोगों ने उनके स्वागत में किया पारंपरिक नृत्य

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जौनसार – हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले के बीजोड गांव से चालदा महाराज की डोली संक्रांति पर्व के दिन हनोल स्थित महासू देवता मंदिर में कई वर्षों के पश्चात पहुंची नव युवकों के द्वारा सांस्कृतिक नृत्य कर देवता का स्वागत और सम्मान किया गया।

कहा जाता है कि बोठा महासू , बाशिक , पवासी एवं चालदा चार महासू भाई है । बोठा महासू देवता का मुख्य मंदिर हनोल में है , बोठा महासू को न्याय का देवता कहा जाता है उनका निर्णय स्थानीय लोगो में सर्वमान्य होता है जबकि चालदा महाराज चलायमान है जो जौनसार बावर, हिमाचल प्रदेश, उत्तरकाशी आदि जनपदों में प्रवास पर रहते हैं और लोगों की मन्नतें पूरी करते हैं।

बासिक महासू की पूजा मेंड्रथ नामक स्थान पर होती है. जबकि हनोल से 3 किलोमीटर दूर ठडियार गांव में पबासिक महासू की पूजा की जाती है. सबसे छोटे भाई चालदा महासू को भ्रमणप्रिय देवता माना जाता है जिनकी पूजा हर वर्ष अलग-अलग स्थानों पर होती है. यह भी माना जाता है कि चालदा महासू 12 वर्ष तक उत्तरकाशी और 12 वर्ष तक देहरादून जिले में भ्रमण करते हैं.

बावर के हनोल त्यूनी स्थित तमसा ( टाँस ) नदी के किनारे श्री महासू देवता का मंदिर वास्तुकला के नागर शैली में बना है । पौराणिक कथा के अनुसार किरमिक नामक राक्षस के आंतक से क्षेत्रवासीयो को छुटकारा दिलाने के लिए हुणाभाट नामक ब्राहामण ने भगवान शिव और शक्ति की पूजा / तपस्या की ।


भगवान शिव और शक्ति के प्रसन्न होने पर मैद्रथ – हनोल में चार भाई महासू की उत्पत्ति हुई और महासू देवता ने किरमिक राक्षस का वध कर क्षेत्र की जनता को इस राक्षस के आंतक से मुक्ति दिलाई , तभी से लोगो ने महासू देवता को अपना कुल आराध्य देव माना और पूजा अर्चना शुरू की।

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अनुसार महासू मंदिर हनोल में 9 वीं से 10 वीं शताब्दी का बताया गया है। जबकि हनोल महासू देवता के आगमन को लेकर अनेक किवदंतीया क्षेत्र में प्रचलित है। महासू महाराज के धाम में पहुंचकर सुख की अनुभूति होती है ।


हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले के बीजोड गांव से चालदा महाराज की डोली संक्रांति पर्व के दिन हनोल स्थित महासू देवता मंदिर में कई वर्षों के पश्चात पहुंची इन नव युवकों का यह सांस्कृतिक नृत्य देवता के स्वागत और सम्मान में है।

महासू को भगवान शिव का अवतार माना जाता है। किंवदंती है कि किरमिक राक्षस के आतंक से क्षेत्र के लोगों को छुटकारा दिलाने के लिए हूणाभाट नामक ब्राह्मण ने भगवान शिव व शक्ति की तपस्या की जिससे प्रसन्न होकर मेंड्रथ-हनोल में चार भाई महासू (बौठा महासू, पबासिक महासू, बासिक महासू, चालदा महासू) की उत्पत्ति हुई तथा महासू देवता ने किरमिक राक्षस का वध कर स्थानीय लोगों को उसके आतंक से मुक्ति दिलाई। तभी से स्थानीय व आस-पास के लोग महासू को अपना कुल आराध्य मान उसकी पूजा करने लगे।

वर्तमान में महासू देवता मंदिर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अधीन है जिसके अनुसार यह लगभग 9वीं-10वीं शताब्दी में बनाया गया था. देहरादून से विकासनगर, चकराता व त्यूनी होते हुए मोटरमार्ग से लगभग 190 किलोमीटर की दूरी तय कर हनोल स्थित महासू देवता मंदिर पहुँचा जा सकता है.