चालिया पर्व भगवान झूलेलाल की मूर्ति का विसर्जन कर 40वे दिन समाप्त किया गया

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ऋषिकेश -सिंधी लेडीज क्लब के द्वारा जिस प्रकार से गणेश उत्सव मनाया जाता है उसी प्रकार भगवान झूलेलाल का उत्सव चालिया पर्व के रूप में मना कर आज 40 वे दिन उनका विसर्जन किया गया।

आपको बता दें कि कहा जाता है झूलेलाल सिन्धी हिन्दुओं के उपास्य देव हैं जिन्हें ‘इष्ट देव’ कहा जाता है। उनके उपासक उन्हें वरुण (जल देवता) का अवतार मानते हैं। वरुण देव को सागर के देवता, सत्य के रक्षक और दिव्य दृष्टि वाले देवता के रूप में सिंधी समाज भी पूजता है। उनका विश्वास है कि जल से सभी सुखों की प्राप्ति होती है और जल ही जीवन है। जल-ज्योति, वरुणावतार, झूलेलाल सिंधियों के ईष्ट देव हैं जिनके बागे दामन फैलाकर सिंधी यही मंगल कामना करते हैं कि सारे विश्व में सुख-शांति, अमन-चैन, कायम रहे और चारों दिशाओं में हरियाली और खुशहाली बने रहे।

सिंधी समाज के अनुसार भगवान झूलेलाल का अवतरण सिंधी धर्म के लिए हुआ है।
पौराणिक कथा के अनुसार सिंध का शासक मिरक अपनी प्रजा पर बहुत अत्याचार करता था। उस शासक के अत्याचार से मुक्ति पाने के लिए ही चालीस दिनों तक धार्मिक अनुष्ठान, जप और तप, व्रत-उपवास आदि किए गए। फिर उसके प्रभाव से एक विशालकाय मछली पर भगवान झूलेलाल प्रकट हुए और उन्होंने भक्तों से कहा कि मैं चालीस दिन बाद सिंध में जन्म लूंगा।

भगवान झूलेलाल द्वारा बताए गए स्थान पर चैत्र सुदी दूज के दिन एक बच्चे ने जन्म लिया, जिसका नाम उदय रखा गया था। उनके चमत्कारों के कारण ही बाद में उन्हें झूलेलाल के नाम से जाना गया।

चालिया पर्व के अंतर्गत इन दिनों में खास तौर पर मंदिर में जल रही अखंड ज्योति की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है तथा प्रति शुक्रवार को भगवान का अभिषेक और आरती की जाती है।

भगवान झूलेलाल को भगवान विष्णु तथा सूर्य के ज्योति स्वरूप अवतार माना जाता हैं। इसलिए चालीसा महोत्सव में झूलेलाल का अखंड ज्योति रूप में में पूजन किया जाता है यह उत्सव 16 जुलाई 2012 से शुरू होकर 24 अगस्त तक मनाया जाता है।