उत्तराखण्ड टाइम्स/ ऋषिकेश : राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद उत्तराखण्ड द्वारा जयराम आश्रम ऋषिकेश में आयोजित संस्कृत साहित्य में विज्ञान विषय पर दो दिवसीय अखिल भारतीय शोध संगोष्ठी का आज समापन हुआ। इस संगोष्ठी में आठ राज्यों के ग्यारह विश्वविद्यालय तथा अन्य शिक्षण संस्थानों के शिक्षकों ने प्रतिभाग किया।
कार्यक्रम के समापन सत्र में बतौर मुख्य अतिथि प्रोफेसर प्रेमचन्द्र शास्त्री उपाध्यक्ष उत्तराखण्ड संस्कृत अकादमी ने एस.सी.ई.आर.टी. द्वारा आयोजित इस संगोष्ठी की सराहना करते हुए कहा कि यह संस्कृत विषय को आगे बढ़ाने में मील का पत्थर साबित होगा। उन्होंने संस्कृत में निहित वैज्ञानिकता को नई पीढ़ी तक पहुंचाये जाने पर बल दिया। समापन सत्र में विशिष्ट अतिथि के रूप में प्रान्तीय संगठन मन्त्री संस्कृत भारती योगेश विद्यार्थी ने कहा संस्कृत विश्व की प्राचीनतम वैज्ञानिक भाषा है। आधुनिक युग के संसाधनों का प्रयोग करते हुए इसका प्रचार प्रसार विश्व पटल पर किया जाना चाहिये।
समापन सत्र की अध्यक्षता करते हुए आर.के. कुँवर निदेशक अकादमिक शोध एवं प्रशिक्षण उत्तराखण्ड ने कहा कि नई शिक्षा नीति के अन्तर्गत प्रत्येक विषय के राज्य की पाठ्यचर्या में ज्ञान परम्परा के अन्तर्गत प्राचीन ग्रन्थों में निहित ज्ञान को पाठ्यचर्या का हिस्सा बनाये जाने की बात कही गयी है। इस दिशा में यह कार्यशाला अपने उद्देश्यों को पूर्ण करने में सफल सिद्ध होगी। इस अवसर पर प्रदीप रावत विभागाध्यक्ष पाठ्यक्रम एवं अनुसंधान विभाग ने संगोष्ठी में मौजूद सभी विद्वानों को धन्यवाद देते हुए कहा कि परिषद द्वारा समय-समय पर इस प्रकार की संगोष्ठियां आयोजित की जायेंगी। उन्होंने प्रसन्नता व्यक्त की कि इस संगोष्ठी में विज्ञान विषय के शिक्षकों के द्वारा भी संस्कृत साहित्य का अध्ययन कर उनमें निहित वैज्ञानिकता का विश्लेषण किया गया।
संगोष्ठी के अन्तिम दिन विशेषज्ञों के द्वारा पाँच सत्रों में शोध पत्र प्रस्तुत किये गये। प्रथम सत्र में संस्कृत साहित्य में चिकित्सा विज्ञान और आयुर्वेद विषय पर राजेन्द्र चन्द्र पाण्डे, मोती प्रसाद साहू तथा डॉ. राजेश चन्द्र पाण्डे ने शोध पत्र प्रस्तुत किये। इस सत्र की अध्यक्षता डॉ. ममता त्रिपाठी असिस्टेण्ट प्रोफेसर गार्गी कॉलेज दिल्ली विश्वविद्यालय ने की तथा सत्र का संचालन रोशन गौड़ के द्वारा किया गया।
दूसरे सत्र में भावना नैथानी, डॉ. अमित सेमवाल तथा गिरीश चन्द्र तिवारी ने संस्कृत साहित्य में भौतिक विज्ञान तथा वेदों में अग्नि विद्या विषय पर शोध पत्र प्रस्तुत किये। सत्र की अध्यक्षता डॉ. नौनिहाल गौतम असिस्टेण्ट प्रोफेसर हरि सिंह गौर केन्द्रीय विश्वविद्यालय सागर, मध्य प्रदेश ने की तथा सत्र का संचालन डॉ. उमेश चमोला द्वारा किया गया। डॉ. उमेश चमोला ने संस्कृत ग्रन्थों में विज्ञान के अन्तर्गत महर्षि कणाद, महर्षि आगत्स्य तथा आर्यभट्ट के योगदान पर विचार व्यक्त किये। इसी सत्र में विशिष्ट वक्ता के रूप में डॉ. दिव्या भारती असिस्टेण्ट प्रोफेसर काशी हिन्दू विश्विविद्यालय ने संस्कृत साहित्य में विधि विज्ञान विषय पर विचार व्यक्त किये।
तीसरे सत्र में संस्कृत साहित्य में रसायन विषय पर डॉ. अनिल कुमार मिश्र तथा डॉ. हेमचन्द्र जोशी ने शोध पत्र प्रस्तुत किये। इस सत्र की अध्यक्षता डॉ. अमित जायसवाल एसोसिएट प्रोफेसर राजकीय महाविद्यालय कोटद्वार ने की तथा सत्र का संचालन डॉ. हरिशंकर डिमरी द्वारा किया गया।चौथे सत्र में डॉ. नूतन स्मृति तथा डॉ. ममता चौहान ने संस्कृत साहित्य में वनस्पति और पर्यावरण विज्ञान विषय शोध पत्र प्रस्तुत किये। सत्र की अध्यक्षता डॉ. अरविन्द नारायण मिश्र असिस्टेण्ट प्रोफेसर उत्तराखण्ड संस्कृत विश्वविद्यालय हरिद्वार ने की। सत्र का संचालन करते हुए डॉ. राकेश गैरोला ने प्राचीन भारतीय परम्पराओं में विज्ञान विषय पर शोध पत्र प्रस्तुत किया।
अन्तिम सत्र में संस्कृत साहित्य में विज्ञान से सम्बन्धित सिविल अभिरयान्त्रिकी और वास्तुशास्त्र जैसे विविध विषयों पर डॉ. कैलाश चन्द्र सनवाल, डॉ. ललित मोहन सिंह, हरिश्चन्द्र डंगवाल, मनीष दुबे तथा रोशन लाल गौड़ ने शोध पत्र प्रस्तुत किये। इस सत्र की अध्यक्षता डॉ. आशुतोष गुप्ता असिस्टेण्ट प्रोफेसर गढ़वाल केन्द्रीय विश्वविद्यालय ने की तथा सत्र का संचालन डॉ. नूतन स्मृति द्वारा किया गया।
इस अवसर पर प्रोफेसर मदन मोहन झा निदेशक राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान जम्मू तथा डॉ. वाजश्रवा आर्य उप निदेशक संस्कृत निदेशालय उत्तराखण्ड द्वारा भी अपने विचार व्यक्त किये।इस अवसर पर डॉ. अनिल मिश्र, शिव प्रकाश वर्मा, राकेश नौटियाल भी उपस्थित थे।