जीवित्पुत्रिका व्रत क्या होता है ?..क्या है इसकी पौराणिक कथा ?….. ..जानिए।

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भारत मे अनेको त्योहार मनाया जाता है हर महीने कोई ना त्यौहार होता है जिससे हर घर मे रौनक सी बनी रहती है और बाजारों में भी चहल पहल रहती है गणेश चतुर्दशी समाप्त होने के बाद सारे त्योहारों में से एक जीवित्पुत्रिका का व्रत होता है जीवित्पुत्रिका,ज्युतिया या जितिया भी कहा जाता है हिन्दू पंचांग के अनुसार………….

हर साल आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को जीवित्पुत्रिका का व्रत रखा जाता है यह व्रत संतान प्राप्ति या संतान की लंबी उम्र के लिये किया जाता है यह व्रत निर्जला अनुष्ठान लेकर किया जाता है इस व्रत को बहुत कठिन माना जाता है जितिया का त्योहार तीन दिन का होता है पहले दिन नहा धोकर पूजा पाठ करके उसके बाद कुछ खाया जाता है दूसरे दिन निर्जला व्रत रखा जाता है जितिया को रखकर साथ मे मिष्ठान फल आदि के साथ पूजा किया जाता है जिससे घर मे सूख समृद्धि की प्राप्ति होती है तीसरे दिन तिथि के मुताबिक व्रत खोलती है व्रत खोलने के लिये जीतने प्रकार का व्यंजन बना सकते हैं वो बनाते है और अपना उपवास को खोलते है ।

यह व्रत मुख्य रूप से नेपाल के मिथिला और थरुहट, भारतीय राज्यों बिहार , झारखंड , उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल के नेपाली लोगों द्वारा मनाया जाता है। इसके अलावा, यह व्यापक रूप से पूर्वी थारू और सुदूर-पूर्वी मधेसी लोगों द्वारा मानाया जाता है।

जीवित्पुत्रिका व्रत की पौराणिक कथा..……………..

1. महाभारत के युद्ध में पिता की मौत के बाद अश्वत्थामा बहुत नाराज था। सीने में बदले की भावना लिए वह पांडवों के शिविर में घुस गया। शिविर के अंदर पांच लोग सो रहे थे। अश्वत्थामा ने उन्हें पांडव समझकर मार डाला। कहा जाता है कि सभी द्रौपदी की पांच संतानें थीं। अर्जुन ने अश्वत्थामा को बंदी बनाकर उसकी दिव्य मणि छीन ली। क्रोध में आकर अश्वत्थामा ने अभिमन्यु की पत्नी के गर्भ में पल रहे बच्चे को भी ब्रह्मास्त्र से मार डाला।

ऐसे में भगवान श्रीकृष्ण ने अपने सभी पुण्यों का फल उत्तरा की अजन्मी संतान को देकर उसके गर्भ में पल रहे बच्चे को पुन: जीवित कर दिया। भगवान श्रीकृष्ण की कृपा से जीवित होने वाले इस बच्चे को जीवित्पुत्रिका नाम दिया गया। तभी से संतान की लंबी उम्र और मंगल कामना के लिए हर साल जितिया व्रत रखने की परंपरा को निभाया जाता है।

2-कहानी के अनुसार जीमूतवाहन गंधर्व के बुद्धिमान और राजा थे। जीमूतवाहन शासक से संतुष्ट नहीं थे और परिणामस्वरूप उन्होंने अपने भाइयों को अपने राज्य की सभी जिम्मेदारियाँ दीं और अपने पिता की सेवा के लिए जंगल चले गए। एक दिन जंगल में भटकते हुए उसे एक बुढ़िया विलाप करती हुई मिलती है। उसने बुढ़िया से रोने का कारण पूछा, जिस पर उसने उसे बताया कि वह सांप (नागवंशी) के परिवार से है और उसका एक ही बेटा है। एक शपथ के रूप में, हर दिन, एक सांप को एक फ़ीड के रूप में पाखीराज गरुड़ को चढ़ाया जाता है और उस दिन उसके बेटे को अपना भोजन बनने का मौका मिला। उसकी समस्या सुनने के बाद, जिमुतवाहन ने उसे सांत्वना दी और वादा किया कि वह अपने बेटे को जीवित वापस ले आएगा और गरुड़ से उसकी रक्षा करेगा। वह खुद को चारा के लिए गरुड़ को भेंट की जाने वाली चट्टानों के बिस्तर पर लेटने का फैसला करता है। गरुड़ आता है और अपनी अंगुलियों से लाल कपड़े से ढंके जिमुतवाहन को पकड़कर चट्टान पर चढ़ जाता है। गरुड़ को आश्चर्य होता है जब वह जिस व्यक्ति को फंसाता है वह प्रतिक्रिया नहीं देता है। वह जिमुतवाहन से उसकी पहचान पूछता है जिस पर वह गरुड़ को पूरे दृश्य का वर्णन करता है। गरुड़, जीमूतवाहन की वीरता और परोपकार से प्रसन्न होकर, सांपों से कोई और बलिदान नहीं लेने का वादा करता है। जिमुतवाहन की बहादुरी और उदारता के कारण, सांपों की दौड़ बच गई और तब से, बच्चों के कल्याण और लंबे जीवन के लिए उपवास मनाया जाता है।