देश प्रेम देश के प्रति आदर्श पूर्ण कर्तव्य की भावना है।

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देश प्रेम
देश प्रेम देश के प्रति आदर्श पूर्ण कर्तव्य की भावना है। देश भक्त अपने देश के सम्मान के लिये अपने प्राणो़ तक की आहुति दे डालते हैँ। बाल्मीकी रामायण में लंका बिजय के बाद मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम ने लक्ष्मण से कहा था “जननी जन्म भूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी” अर्थात जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी महान है। दुनिया के हर देश में उनके देशभक्तोँ का एक समूह होता है। जो देश के विकास के लिए अपना सब कुछ अर्पित करने के लिए तैयार रहते हैं। इसी आधार पर लौह पुरुष बल्लभ भाई पटेल ने कहा था कि यह हर नागरिक की जिम्मेदारी है कि यह अनुभव करे कि उसका देश स्वतन्त्र है। उसकी स्वतन्त्रता की रक्षा करना उसका कर्तव्य है। हर एक भारतीय को यह भूल जाना चाहिए कि वह एक राजपूत है, एक सिक्ख या जाट है। उसे यह याद होना चाहिए कि वह एक भारतीय है। उसे अपने देश में हर प्रकार के अधिकार हैँ। पर कुछ जिम्मेदाररियाँ भी हैँ। देश भक्ति एक शब्द नहीं है। एक भावना है। जिससे जुड़ जाने पर इन्सान अपने देश के लिए अपने प्राणो़ का बलिदान भी देने में पीछे नहीं हटता।
हमारा देश तो सदैव वीरोँ की जन्मस्थली रहा है। यहाँ का इतिहास त्याग और बलिदान की कथाओँ से ओत प्रोत रहा है। भारत माँ के महान सपूतोँ ने अपने देश की स्वतन्त्रता तथा स्वाभिमान की रक्षा तथा उसके उत्थान के लिए अपने प्राणो की बाजी लगा दी।इन पर हमेँ गर्व है।


प्राचीन भारतीय इतिहास में जहाँ चन्द्रगुप्त मौर्य और शिवाजी जैसे महान सपूतोँ ने अपने देश की स्वतंत्रता के लिए देश प्रेम की ज्योति को प्रज्वलित किया।


अँग्रेजोँ से जूझने वाले सरदार भगत सिंह, रामप्रसाद बिस्मिल, खुदीराम बोस, चन्द्र शेखर आजाद, सुभाष चन्द्र बोस, महात्मा गांधी, पँ०जवाहर लाल नेहरू आदि ने जो देश प्रेम का आदर्श प्रस्तुत किया है। वह अनुपम एवँ अतुलनीय है।


क्रान्तिकारी सरदार भगत सिंह ने यहाँ तक कहा -किसी भी कीमत पर बल का प्रयोग न करना काल्पनिक आदर्श है। नयाआन्दोलन जो देश में शुरू हुआ है और जिसकी हम चेतावनी दे चुके हैं। वह गुरू गोबिन्द सिंह, शिवाजी, कमल पाशा, राजा खान, वाशिंगटन,, और लेनिन के आदर्शोँ का प्रतिफल है। निश्चित ही ये हमारे प्रेरणा के स्रोत हैँ। जो भावी पीढी को युग युगोँ तक अमर बलिदान की प्रेरणा देते रहेंगे। ये हमारे गौरव हैँ। भारतीय इतिहास के ज्योतिर्मय नक्षत्र हैं। मानवता के भूषण हैं।


जब हमारा देश ब्रिटिश शासकोँ की जँजीरोँ से जकडा हुआ था। उसको मुक्त कराने के लिए देश भक्तोँ ने बैठकों का आयोजन करके देश भक्ति की प्रेरणा दी।


देश प्रेम का भाव अत्यन्त व्यापक है। देश प्रेम की अभिव्यक्ति बिभिन्न रुपोँ से होती है। जीवन के किसी भी क्षेत्र में कार्य करने वाला व्यक्ति राष्ट्र प्रेमी और देश भक्त हो सकता है। सैनिक युद्ध भूमि में अपने देश का परिचय देता है राजनीतिक और जन नेता राष्ट्र के उत्थान का मार्ग प्रशस्त करते हैं। समाज सुधारक नया जीवन देते हैं। धार्मिक क्षेत्र के लोग सच्चे मानव धर्म की शिक्षा देकर राष्ट्र का कल्याण करते हैं। साहित्य कार राष्ट्रीय चेतना जन जागरण के स्वर फूँकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। कर्मचारी श्रमिक किसान निष्ठा पूर्वक अपना अपना कार्य करते हुये देश की महान सेवा करते हैं। प्रत्येक ब्यक्ति राष्ट्र के बिकास में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे सकता है। इस के लिए निस्वार्थ भाव से कार्य करना होगा। इसी आधार पर हमारे देश के द्वितीय प्रधानमन्त्री प०लाल बहादुर शास्त्री जी ने कहा –देश के प्रति निष्ठा सभी निष्ठाओँ से पहले आती है। यह पूर्ण निष्ठा है, क्योंकि इसमें कोई प्रतीक्षा नहीं कर सकता है कि बदले मेँ उसे क्या मिलता है।
सुभाष चन्द्र बोस जी ने युवाओँ को प्रेरित करते हुए कहा -हमारा कर्तव्य है कि हम अपनी स्वतन्त्रता का मोल अपने खून से चुकायेँ। हमेँ अपने बलिदान और परिश्रम से जो आजादी मिली है, हमारे अन्दर उसकी रक्षा करने की ताकत होनी चाहिए।


हम सभी को राष्ट्रीय पर्वोँ पर सत्यनिष्ठा के साथ प्रतिज्ञा लेनी चाहिये कि देश प्रेम जैसे परम कल्याण की भावना में एकजुट होकर कार्य करेँ। हममेँ जो जहाँ है, वही पर पूरी कर्तव्य निष्ठा और सच्चे लगन से अपने कार्यो को करेँ। हमारे हृदय मेँ केवल एक ही भावना होनी चाहिए कि हमारा देश प्रगति के पथ पर अग्रसर होता रहे।


लेखक—-
अखिलेश चन्द्र चमोला, राज्यपाल पुरस्कार तथा अन्तराष्टीय शिक्षक पुरस्कार से सम्मानित। हिन्दी अध्यापक रा0इ0का0सुमाडी विकास खन्ड खिर्सू।