नारी की समाज में, घर में और बाहर क्या हो भूमिका एक बार फिर चिंतन की जरूरत है, दो दिवसीय नारी संसद में इन विषयों पर होगी चर्चा।

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ऋषिकेश परमार्थ निकेतन आश्रम में 8 और 9 अक्टूबर को पूज्य स्वामी चिदानंद मुनि की अध्यक्षता में परमार्थ निकेतन आश्रम में नारी संसद का आयोजन किया जा रहा है. दो दिवसीय इस संसद में 4 सत्र होंगे. पहले सेशन में महिलाओं को परिवार की संरचना और कार्य संचालन की जानकारी दी जाएगी और उनसे विचार विमर्श और उनके विचारों को एक दूसरे के समक्ष रखने का मौका मिलेगा. दूसरे सत्र में विदुषी वक्ता खुद बताएंगे कि भारतीय नारी के लिए क्या-क्या करना ठीक रहेगा. उनके सपने क्या है. चुनौतियां कहां आ रही है. तीसरे सत्र में नारी, शिक्षा, स्वास्थ्य व पर्यावरण के बारे में जानकारियां आदान प्रदान की जाएगी. वहीं महिलाएं अपनी अपनी समस्याएं और अनुभव शेयर करेंगे.

यह कार्यक्रम नॉलेज शेयरिंग और नेटवर्क बिल्डिंग से जुड़ा है. हर सत्र में परमार्थ निकेतन के बच्चे लघु नाटिका से विशेष नाट्य मंचन करेंगे. मुख्य अतिथि के तौर पर राज्यपाल केरल आरिफ मोहम्मद खान, राज्यपाल उत्तर प्रदेश श्रीमती आनंदीबेन पटेल, संस्कृति मंत्री अर्जुन राम मेघवाल, विधानसभा अध्यक्ष श्रीमती रितु भूषण खंडूरी व कई केंद्र मंत्री कार्यक्रम में शिरकत करेंगे. इसके अलावा कहीं विश्वविद्यालय की महिला कुलपति बतौर अतिथि शिरकत करेंगे. दिल्ली, लखनऊ, गोरखपुर समेत दूसरे विश्वविद्यालयों के प्रोफेसर, देश विदेश से आई महिलाएं और हमारे उत्तराखंड की महिलाओं द्वारा जमीन पर काम करने के चलते समाज में सकारात्मक बदलाव के बारे में जानकारी देंगे. इस कार्यक्रम का उद्देश्य है कि महिलाओं के अतीत और वर्तमान पर संगीता विमर्श को आगे बढ़ाना है. इससे व्यवहारिक ज्ञान की जो धारा निकलेगी उससे भविष्य की कार्य योजना के प्रस्ताव तैयार होंगे जो काम राज को करना है. उससे जुड़े प्रस्ताव केंद्र और राज्य सरकार को सौंपी जाएंगे और जो समाज को करना है उसे समाज को सौंपी जाएंगे.

मुख्य बिंदु नारी जाति को लेकर भारत की जो समाज है. देश समाज की चेतना है. आज पश्चिमी ,सामाजिक परिस्थितियों से प्रभावित विचार हावी होने लगे हैं. इसमें नारी का कमोडिटीकरण, वस्तुकरण होने लगा है. नारी वस्तु समझे जाने लगी है. यह बाजारवाद की अधिकता का नतीजा है. यह सुख मतलब केवल भौतिक सुख केवल मेरा सुख रह गया है. यह वातावरण के प्रदूषण का परिणाम है. आज के दौर में इन सब की मीमांसा की जानी चाहिए. नारी की समाज में घर में बाहर भूमिका क्या हो इस पर एक बार पुणे चिंतन की जरूरत है. नारी संसद इसी की जमीन तैयार करेगी.