पहाड़ों में है देवी देवताओं का वास तभी इतनी असुविधाओं के बाद भी है सुख शांति

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उत्तराखंड देवी देवताओं की भूमि है , इस बात को महसूस किया जा सकता है । आज नवरात्रि का अंतिम दिन मां सिद्धिदात्री का पूजन किया गया। हवन करके कन्याओं को जिमाकर दान दक्षिणा दे कर नवरात्रि का समापन किया और माता से सुख समृद्धि शांति मोक्ष की कामना की जाती है।

नवरात्रि का महत्व को जानना है तो उत्तराखण्ड में आइए वो भी पहाड़ों में , जहां हर कुल में, गांव में और मंदिरों में माता को खुश करने के लिए माता की चौकी लगाकर ज्यों बोए जाते है और पूरे नौ दिन माता का पाठ किया जाता है।

कुल के ब्राह्मण एवम् ओजियों की रहती है बड़ी भूमिका।

ब्राह्मण माता का पाठ करते है पूजा अर्चना करते है वहीं ओजियो के द्वारा ढोल डमाऊ से माता का मंडाण लगाया जाता है । सभी गांव के लोग एक साथ मिलकर रात दिन इन मंडाण में शामिल हो कर अवतरित देवी का दर्शन कर खुद को सौभाग्य वान मानते है। चंद्रबदनी, सुरकंडा देवी, धारी देवी, राजराजेश्वरी, कुंजापुरी देवियों का वास है जो टिहरी जिले में स्थित है।

नवरात्रि के पांचवे दिन से माता का मंडाण शुरू हो जाता है जहां ओजी वर्ग के लोग ही ढोल दमाऊ की थाप में माता को अवतरित कर नचवाते है। माता के मंडाण में माता का गुणगान किया जाता है जिससे माता खुश होकर खूब नाचे। मंडाण में आए लोगों को ज्यूदयाल यानी चावल का टीका पसवा के द्वारा सभी पर लगाया जाता है।

माता के साथ भैरव देवता भी अवतरित होकर नाचते है साथ में अन्य देवता नरसिंह, भगवती, आदि देवता भी नाचते है। और गांव वासियों को आशीर्वाद देते है , गांव की महिलाओं के द्वारा अग्याल के रूप मे चढ़ावा चढ़ाया जाता है। नवरात्रि की अष्टमी व नवमी को हरियाली काट कर प्रसाद के साथ सबको बांटी जाती है। हरियाली सुख समृद्धि की प्रतीक मानी जाती है। जिसको पुरुष अपने कान के पीछे एवम् महिलाए अपने बालो में लगाती है।

उत्तराखंडी जो पहाड़ों से पलायन कर बाहर परदेशों में बस गए है सायद उनके लिए यह सब ढोंग पाखंड हो लेकिन इस तरह की व्यवस्थाएं उस समय से है जब कोई डॉक्टर, हॉस्पिटल, कोर्ट, पुलिस नही होते थे। पहाड़ वासी अपने हर सुख दुख के लिए अपने कुल देवता पर आश्रित होते थे। उन्हीं से उनको शांति मिलती थी उन्हीं से उनको उम्मीदें मिलती थी। उन्हीं से वो कुछ गलत करने से डरते थे।