पूरे साल के एकादशी व्रत ना करने पर भी निर्जला एकादशी करने पर भी सारे एकादशी व्रत का फल मिलता है पढ़िये पूरी खबर
जेष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को निर्जला एकादशी कहा जाता है। एक ओर ज्येष्ठ मास की भीषण गर्मी जिसमें सूर्यदेव अपनी किरणों की प्रखर ऊष्मा से मानो अग्नि वर्षा कर रहे हों दूसरी ओर श्रद्धालु धर्म प्राण जनता द्वारा दिन भर निराहार एवं निर्जल उपवास रखना।
सूर्योदय से सूर्यास्त तक ही नहीं अपितु दूसरे दिन द्वादशी प्रारंभ होने के बाद ही व्रत का पारायण किया जाता है। अतः पूरे एक दिन एक रात तक बिना पानी के रहना वह भी इतनी भीषण गर्मी में यही तो है भारतीय उपासना पद्धति में कष्ट सहिष्णुता की पराकाष्ठा।
मंदिर एवं गुरुद्वारों में कथा प्रवचन धार्मिक अनुष्ठान एवं शबद कीर्तन आदि के कार्यक्रम जहां दिन भर चलते हैं, वहीं शीतल जल के छबीले लगाकर राहगीरों को बुला-बुला कर बड़ी आस्था के साथ पानी पिलाया जाता है। बस स्टैंडों के आसपास पानी के छबीले लगाकर अनेक धार्मिक संगठन दिन भर शीतल जल का वितरण करना बड़े पुण्य का कारण मानते हैं।
निर्जला एकादशी को पानी का वितरण देखकर आपके मन में एक प्रश्न अवश्य आता होगा कि जहां इस दिन के उपवास में पानी न पीने का व्रत होता है तो यह पानी वितरण करने वाले कहीं लोगों का धर्म भ्रष्ट तो नहीं कर रहे हैं, लेकिन इसका मूल आशय यह है कि व्रतधारी लोगों के लिए यह एक कठिन परीक्षा की ओर संकेत करता है कि चारों ओर आत्मतुष्टि के साधन रूप जल का वितरण देखते हुए भी उसकी ओर आपका मन न चला जाए।
पौराणिक कथा क्यों मनाते हैं निर्जला एकादशी
एकादशी का व्रत पालनहार भगवान विष्णु को समर्पित है। इसमें भगवान विष्णु के साथ-साथ माता लक्ष्मी की भी पूजा की जाती है। लक्ष्मी नारायण के प्रसन्न होने से घर में धन-धान्य और खुशियां भरपूर मात्रा में आ जाती हैं। तमाम तरह के दुखों को दूर करने वाले इस निर्जला एकादशी का व्रत बहुत ही कठिन है। इसे बहुत संयम से पूर्ण करना पड़ता है।
एक समय की बात है जब महर्षि व्यास ने निर्जला एकादशी का जो वर्णन पांडु पुत्र भीम से किया था उसका वर्णन पद्म पुराण में किया है। इस पुराण में बताया गया है कि साल में जो 24 एकादशी होती है उनमें ज्येष्ठ मास की एकादशी ऐसी है जिसमें व्रत रखने मात्र से मनुष्य को स्वर्ग की प्राप्ति हो जाती है। जो लोग सभी 24 एकादशी का व्रत नहीं रख सकते हैं उनके लिए सबसे उत्तम निर्जला एकादशी व्रत है। इसी बात को जानकर भीमसेन ने भी इस एकादशी का व्रत किया था।
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार सर्वज्ञ वेदव्यास ने पांडवों को चारों पुरुषार्थ: धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष देने वाले एकादशी व्रत का संकल्प कराया। तब युधिष्ठिर ने कहा, जनार्दन! ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष में जो एकादशी पड़ती है, उसके बारे में बताएं। भगवान श्री कृष्ण बोले, हे राजन इसके बारे में तो परम धर्मात्मा सत्यवती नन्दन व्यासजी ही बताएं। तब वेदव्यासजी ने कहा कि, दोनों पक्षों (कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष) की एकादशी में अन्न खाना वर्जित है। द्वादशी के दिन स्नान आदि के बाद पहले ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए और अन्त में स्वयं भोजन करना चाहिए।
वेदव्यासजी की बात सुनकर भीमसेन बोले कि उनकी माता समेत सभी भाई उनसे एकादशी व्रत रखने के लिए कहते हैं। लेकिन उनके लिए व्रत रखना कठिन है। वह दान, पाठ, पूजा, स्नान आदि कर सकते हैं। लेकिन व्रत के दौरान भूखा नहीं रह सकते। ऐसे में क्या किया जाए। तब वेद व्यास जी ने कहा कि तुम्हें नर्क और स्वर्ग लोक दोनों के बारे में पता है। ऐसे में तुम प्रत्येक माह आने वाली एकादशी के दिन अन्न ग्रहण करो।
भीमसेन ने कहा – मैं सच कहता हूं। मुझसे बिना भोजन किए व्रत व उपवास नहीं किया जाता। मुझे हमेशा भूख लगती है और अधिक भोजन करने के बाद ही शांत होती है। तब भीमसेन ने वेद व्यास जी से निवेदन करते हुए कहा कि हे महामुनि! मैं हर माह में दो नहीं बल्कि पूरे वर्ष में एक ही उपवास कर सकता हूं, जिससे कि मुझे स्वर्ग की प्राप्ति हो और मैं कल्याण का भागी बन सकूं। यदि ऐसा कोई एक व्रत हो तो बताइये।
तब वेदव्यास जी ने ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी निर्जला एकादशी के बारे में बताया। इस दिन व्रत करने से सभी इच्छाएं पूरी होती है और स्वर्ग प्राप्त होता है। इस दिन आचमन करने की अनुमति और स्नान करने की अनुमति है। व्रत के दौरान भोजन और पानी दोनों पीना मना है। सूर्योदय से लेकर द्वादशी के सूर्योदय तक जल नहीं पी सकते। ऐसा करने से 1 साल की एकादशियों का पूर्ण फल प्राप्त हो सकता है।