“प्रकृति  कु असंतुलन” गढ़वाली कविता में छलका पर्यावरण का दर्द

खबर शेयर करें -

    “प्रकृति कु असंतुलन “

                 हेमवती नंदन भट्ट (हेमू )  वरिष्ठ पत्रकार एवं कवि

प्रकृति कु असंतुलन चिंता कि चिता मा भड़ायेणु च जंगल कु छपान करि जंगला जंगलाती माफिया गल्लेदारुं दगड़ साल, देवदार, बुरांस तैं आड़ा छिल्ला बणायेणू च चिंता कि बात या अछेक ह्वयिं च बकिबात कु कनु यु असंतुलन ह्वयूं च ?

वन रक्षक रक्षा मा डट्यां छन कबि घ्वीड़ काखड़ क पिछाड़ी त कबि सुंगर चीतलुं कि धाद खेन्ना छन गल्लेदारुं कु कोरान लगायूं च अर जंगलाती ड्यूटी बजाणा छन वूंकि खलल कि डौर कु दखल नि देयेणु च कर्म हि पूजा कु मूल मंत्र जपेणू च इतगा कमर तोड़ डालौं ल्हसौड़ मेनथ का बाद बि यु कन बकिबात कु कनु यु असंतुलन ह्वयूं च ?

जंगल बचाओ पाणि बचाओ जीवन बचाओ प्रदूषण ना होण द्याओ कि चिंता मा सब्बि बड़ी बड़ी सेमिनारूं गोष्ठ्यूं तैं पूर्योणा छन अर राति दारू का दग्ड़ कुखड़ी का ठुंगार पर टपकरा लगौंणा छन बड़ा ठाक्कुरौं का भाषण कि खातिर हैलिकाॅप्टर उतन्न का वास्ता डांडौं मैदान बणायेणू च डालौं कु निच्वात करायेणु च इतगा परिश्रम का बाद बि यु कनु बकिबात कु कनु यु असंतुलन ह्वयूं च ?

जौं सौंकारुं मु रैंण बसणौं कु घौर नि यना बेघरबार अमीरूं तैं पहाड़ मा हवादार महल बणायेणा छन बेघरबारूं तैं घर बणै​कि देण कि समाज सेवा कु पुण्य अर भगीरथ प्रयासूं का बाद बि यु कनु बकिबात कु कनु यु असंतुलन ह्वयूं च ?

जौंन कब्बि डाली नि लगै वी डाली लगावा, हरियाली उगावा कि रटा रटि मा भसेणा छन अर भाषणूं क् गीत लगौंण क् बदला सि पर्यावरणमित्र, पर्यावरणविद् ब्वलेणा छन भला लोगुं का इन भला भगीरथ प्रयासूं का बाद बि कखि सूखू पड़्यूं कखि अकाल कखि सर्ग दिदा पाणि-पाणि कखि घाम ही घाम अर कखि डाम हि डाम कखि भ्यूंचलू भूस्खलन च अर कखि पलायन अर बेरोजगारी यन टाट पलाण कु यु फल किलै च, संगता बकिबातौ असंतुलन किलै च यां कु जबाब जैमु च वू बेकसूर अर अपाहिज च वु ही कलजुगी भगीरथ च।