महिला सशक्तिकरण: आप अरसे खाने के शौकीन है तो ये वीडियो जरूर देखें, गढ़वाली मिष्ठान ‘अरसों’ को संजोए रखने का प्रयास कर रही मधु असवाल
अरसे, शायद हर उत्तराखंडी ने अपनी जुबान से इसका स्वाद जरूर चखा होगा। लेकिन अब ये सिर्फ शादी, सगाई, मुंडन या किसी शुभ कार्य में ही मुश्किल से खाने को नसीब हैं। जिससे कहा जा सकता है कि अरसे भी अन्य पारंपरिक व्यंजनों की तरह लुप्त होने की कगार पर हैं।
अब चावल और गुड़ के मिश्रण से बनने वाले अरसे को खाने का मन तो आपका भी कर रहा होगा। लेकिन अभी न तो किसी की शादी है न सगाई! तो फिकर नहीं कभी बिन शादी सगाई के अरसे खाने का मन हो तो आप मुनिकीरेती निवासी मधु असवाल से संपर्क कर सकते हैं।
जी हां, मधु असवाल ने अरसे सहित तमाम पारंपरिक व्यंजनों को पुनर्जीवित करने की दिशा में एक पहल की है। जिसको उन्होंने बखूबी महिला सशक्तिकरण से जोड़ने का भी बेहतरीन प्रयास किया है। मुनिकीरेती में मधु स्वयं सहायता समूहों की तरह अपनी कुछ साथी महिलाओं के साथ मिलकर रोजाना पारंपरिक वेशभूषा में अरसे बनाने का काम कर रही हैं। जिसको फिलहाल स्थानीय स्तर पर बेचकर मुनाफे से लाभान्वित भी हो रही हैं। इस छोटे से प्रयास से उन्होंने महिला सशक्तिकरण की दिशा में अन्य महिलाओं को भी जुड़ने की प्रेरणा दी है।
मधु अस्वाल का कहना है कि आज उत्तराखंड के पारंपरिक व्यंजन लुप्त होने की कगार पर हैं। पूरे गढ़वाल रूट पर कहीं पर भी अरसे नहीं मिलते हैं। अब तो शादी विवाह में भी शहरों की आधुनिकता के चलते मुश्किल से ही अरसे खाने को मिलते हैं। चूंकि अरसे को बनाने में ज्यादा मेहनत लगती है। इसलिए नई जनरेशन तो इसे बनाने में भी कतराती है। इसलिए उन्होंने अपने साथी महिलाओं के साथ मिलकर अरसे व अन्य पारंपरिक व्यंजनों को बचाने की दिशा में एक कदम बढ़ाया है।