मुख्यमंत्री ने नौकरशाही पर कसा शिकंजा, दिए समय से ऑफिस आने और सभी के फोन कॉल रिसीव करने के निर्देश
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देहरादून, उत्तराखंड के मंत्रियों को अपने मातहत सचिवों की एसीआर लिखने का अधिकार कब मिलेगा यह सीएम पुष्कर सिंह धामी के विवेक पर निर्भर है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि नौकरशाही पर नकेल कसने की कसरत कभी हुई ही नहीं। यह अलग बात है कि इसे लंबे समय तक कायम नहीं रखा जा सका। बहरहाल, एक बार फिर मुख्यमंत्री ने इसकी कोशिश शुरू की है। समय से ऑफिस नहीं आने वाले तथा आम जनता और जनप्रतिनिधियों की फोन कॉल रिसीव नहीं करने वाले अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई के संकेत दिये है। इसे लेकर मुख्य सचिव को निर्देशित भी किया गया है। देखना यह है कि सीएम का यह फरमान इतना असरदार होता है।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने सोमवार को मुख्य सचिव को निर्देश दिये हैं कि यह सुनिश्चित किया जाय कि सभी अधिकारी एवं कर्मचारी समय पर ऑफिस पहुंचे और ऑफिस टाइम में पूर्ण मनोयोग से कार्य करें। समय पर कार्यालय न आने वाले अधिकारियों एवं कर्मचारियों पर सख्त कार्रवाई की जाय। जन समस्याओं का त्वरित समाधान किया जाय। जनता एवं जन प्रतिनिधियों के फोन अवश्य रिसीव करें। यदि किसी वजह से फोन रिसीव न कर पायें तो कॉल बैक जरूर करें। गौरतलब है कि इससे पहले हरीश रावत और त्रिवेंद्र सिंह रावत के कार्यकाल में भी नौकरशाही के लिए ऐसे ही निर्देश जारे हुए। हरीश रावत के कार्यकाल के शुरुआती दिनों में अफसरों को नींद नहीं आने की दवाई लेनी पड़ती थी। धीरे-धीरे हरीश रावत भी शिथिल होते गये और अफसर भी पुराने ढर्रे पर लौट गये। इसी तरह त्रिवेंद्र ने भी नौकरशाही पर नकेल कसने के क्रम में एनएच 74 घोटाले में दो आईएएस को सस्पेंड कर दिया।इससे लगा कि अब अधिकारियों की मनमर्जी नहीं चलेगी। लेकिन ऐसा कुछ नहीं। अब पुष्कर सिंह धामी ने यह बीरा उठाया है। देखना यह है कि सीएम धामी अपने प्रयास में कितना सफल होते हैं।
मंत्रियों को भी जवाबदेह बनाने की जरूरत
उत्तराखंड में फोन कॉल रिसीव नहीं करने की लत सिर्फ नौकरशाही में ही नहीं है। यहां के कई जनप्रतिनिधि और सरकार के मंत्री भी इसी लत के शिकार हैं। मंत्रियों की बात करें तो सूचना विभाग की निर्देशिका में मंत्री के जो फोन नम्बर दर्ज होते हैं उस फोन को शायद ही कोई मंत्री अपने पास रखते हैं। कॉल रिसीव हो भी जाती है तो मंत्री से बात हो जाए यह लगभग असंभव है। मंत्री अपने पास पर्सनल फोन रखते हैं जिसका नम्बर गिने चुने लोगों को ही पता रहता है। आम जनता चाहकर भी मंत्री से बात नहीं कर सकती।