लोक संस्कृति की चमक कायम रखने के लिए लोक पर्वों को बचाना जरूरी-डॉ राजे सिंह नेगी
ऋषिकेश-उत्तराखंड की देवभूमि ऋषिकेश में जहां देश के तमाम त्यौहारों को सामूहिक रूप से मनाने की परम्परा रही है वहीं लोक संस्कृति के पर्वों को भी लोगों ने लुप्त नही होने दिया है।खासतौर पर ग्रामीण पृष्ठभूमि वाले पहाड़ मूल के लोग इन पर्वों को संजोने के लिए शिद्दत के साथ जुटे हुए हैं।इसकी झलक आज फूलदेई पर्व के दौरान देखने को मिली।
सोमवार को उत्तराखंड के सुदूरवर्ती पहाड़ी क्षेत्रों के साथ बाल पर्व फूलदेई बेहद उत्साह के साथ मनाया गया।
इस खास मौके पर फूलदेई, छम्मा देई, दैणी द्वार, भर भकार… जैसे लोक गीत सुनने को मिले। अंतरराष्ट्रीय गढ़वाल महासभा के अध्यक्ष एवं आम आदमी पार्टी के विधानसभा प्रत्याशी रहे डॉ राजे सिंह नेगी ने हरिपुर कला स्थित अपने आवास पर बच्चों के साथ प्रकृति का आभार प्रकट करने वाला लोक पर्व फूलदेई मनाया। उन्होंने बताया उत्तराखंड के अधिकांश क्षेत्रों में चैत्र संक्रांति से फूलदेई का त्योहार मनाने की परंपरा है। कुमाऊं और गढ़वाल के ज्यादातर इलाकों में आठ दिन तक यह त्योहार मनाया जाता है। वहीं, कुछ इलाकों में एक माह तक भी यह पर्व मनाने की परंपरा है। बताया कि यह पर्व पूरे पर्वतीय अंचलों में धूमधाम से मनाया जाता है, जो हमारे दिनचर्या, ऋतुओं और उसके वैज्ञानिक पक्ष से जुड़ा है।
किसी भी समाज के विकास के लिए वहां के रीति रिवाज और लोकपर्वों का भी विशेष योगदान होता है। इस शुभ पर्व पर हम सबको अपने नौनिहालों से घर की देहरी पर पुष्प वर्षा कराकर उन्हें शगुन तथा उपहार देकर इस त्यौहार को जीवंत बनाएं रखने के प्रयास करने चाहिए।पिछले कुछ दशकों से हावी होती पश्चिमी सभ्यता के कारण उत्तराखंड ही नहीं सभी अंचलों में पारंपरिक त्योहारों और रीति-रिवाजों पर असर पड़ा है। ऐसे में फूलदेई के प्रति इतना उल्लास संतोष देता है कि हमारी लोक संस्कृति और परंपराएं हमें अपनी जड़ों से जुड़े रहने की प्रेरणा देती है।