वैश्विक शांति के लिए हर साल की तरह श्री जगन्नाथ रथ यात्रा निकाली गई

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ऋषि के वास्तु शांति के लिए श्री जगन्नाथ रथ यात्रा रविवार ३ जुलाई अषाढ़ शुक्ल पक्ष की द्वितीय को श्री क्षेत्र पूरी में भगवन जगन्नथ, बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा का विश्व प्रसिद्द रथ यात्रा उत्सव मनया गया जिसमें लाखों भक्तों ने भक्ति भाव से सहभाग किया और जगन्नाथजी के रथ को प्रेम से खिंचा ।

अंतर्राष्ट्रीय कृष्ण भावनामृत संघ (इस्कॉन) के भक्तोंने भी न केवल भारत अपितु विश्व के प्रमुख शहरों और नगरों में श्री जगन्नाथ रथ यात्रा उत्सव बड़े धूमधाम से मनाया । भारत के मा. राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविन्दजी ने इस्कॉन के भक्तों को शुभ सन्देश देते हुए कहा, “मुझे यह जानकर प्रसन्नता हो रही है कि पूरे भारत में इस्कॉन मंदिर 1 से 9 जुलाई 2022 तक श्री जगन्नाथ रथ यात्रा उत्सव मना रहे हैं, जिसमें विभिन्न शहरों में इस अवधि के दौरान 180 से अधिक यात्राओं की योजना बनाई गई है। मैं इस्कॉन को 100 से अधिक देशों में इस त्योहार को मनाने के लिए बधाई देना चाहता हूं। इस्कॉन ने प्रतिभागियों को उनकी राष्ट्रीयता, जाति, लिंग या सामाजिक स्थिति की परवाह किए बिना आकर्षित करके वसुधैव कुटुम्बकम के सदियों पुराने सिद्धांत का उदाहरण दिया। मैं इस शुभ अवसर पर सभी भक्तों को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं देता हूं।

भगवान जगन्नाथ की शिक्षाएं और आशीर्वाद हमें सेवा और धर्म के मार्ग पर ले जाएं।“रथ यात्रा एक ऐसा समय है जब अखिल ब्रह्मांडनायक भगवान भौतिक इच्छाओं से बंधे सभी विभिन्न प्रकार की बद्ध आत्माओं से व्यक्तिगत रूप से मिलने के लिए अपने मंदिर से बाहर आते हैं। पवित्र लोग मंदिर में भगवान की पूजा करने आते हैं, लेकिन कलि युग में लोग इतने व्यस्त और भौतिकवादी हैं कि वे भगवान के मंदिर में नहीं जाना चाहते हैं। उनकी इतनी व्यस्तताएं हैं कि उनका ध्यान भगवान से हट जाता है। लेकिन भगवान इतने दयालु हैं कि वे व्यक्तिगत रूप से मंदिर से बाहर सड़कों पर आते हैं, अपने रथ पर सवार होकर सभी पर अपनी दया दृष्टि डालते हैं और उन भाग्यशाली आत्माओं को अपने हृदय में ईश्वर प्रेम के बीज बोने का अवसर देते हैं।जैसा कि वैदिक शास्त्रों में पुष्टि की गई है, “एक व्यक्ति जो भगवान की रथ-यात्रा कार उत्सव को देखता है और फिर भगवान को प्राप्त करने के लिए खड़ा होता है, वह अपने शरीर से सभी प्रकार के पापों को दूर कर सकता है।” (ब्रह्मण्ड पुराण) भविष्य पुराण में भी इसी तरह का एक कथन प्रकट होता है: “यहां तक कि अगर एक नीच परिवार में पैदा हुआ, एक व्यक्ति जो रथ-यात्रा का अनुसरण करता है, जब भगवान सामने या पीछे से गुजरते हैं, निश्चित रूप से सर्वोच्च भगवान विष्णु के समान ऐश्वर्य प्राप्त करने के लिए उन्नत हो जाएगा।”यह जानना बहुत दिलचस्प है कि कैसे रथों का यह त्योहार जो कभी केवल पुरी शहर तक सीमित था, अब पूरी दुनिया में मनाया जा रहा है।

1965 में 69 वर्ष की आयु में, जब अंतर्राष्ट्रीय कृष्ण भावनामृत संघ (इस्कॉन) के संस्थापक-आचार्य श्रील प्रभुपाद पहली बार न्यूयॉर्क शहर में मालवाहक जहाज द्वारा पहुंचे, तो वे व्यावहारिक रूप से दरिद्र थे। लगभग एक वर्ष की बड़ी कठिनाई के बाद उन्होंने जुलाई 1966 में इस्कॉन की स्थापना की। वे 1967 में प्राचीन भारतीय रथ यात्रा उत्सव को पश्चिम में ले आए। उस वर्ष श्रील प्रभुपाद ने सैन फ्रांसिस्को के गोल्डन गेट पार्क में उत्सव आयोजित किया, और अब यह पूरी दुनिया में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है।इस्कॉन ऋषिकेश श्री श्री राधा गोविन्द मंदिर के भक्तों ने भी ऋषिकेश नगर में शांति, सौहार्द और वसुधैव कुटुम्बकम का सन्देश देते हुए हरिनाम संकीर्तन के साथ श्री जगन्नाथ रथ यात्रा उत्सव आयोजित किया । भगवान जगन्नाथजी की रथ यात्रा इस्कॉन ऋषिकेश के वर्तमान में स्टूरडीया कालोनी गली न० २ स्थित केंद्र से आवास विकास कालोनी, शिवा एन्क्लैव, भारत विहार कालोनी होते हुए पुनः इस्कॉन ऋषिकेश केंद्र पर सम्पन्न हुई । जगह जगह पर कालोनी के निवासियों ने परिवार सहित श्री जगन्नाथजी का पुष्पों और आरती से स्वागत किया ।

मंत्रोच्चारण और हरिनाम कीर्तन में अनेकों भक्तों और नागरिकों ने भाग लिया और अंत में सभी को श्री जगन्नाथ प्रसाद का वितरण किया। जगन्नाथ जी की रथ यात्रा में इस्कॉन ऋषिकेश के मध्वाचार्य दास, हरे कृष्ण दास, दीन गोपाल दास, चैतन्य लीला दास, सौरभ कृष्ण दास, यशोमती प्राण दास, मोहन वंशी दास, कमलाकांत दास, देव गोविन्द दास सहित डॉ राजेश शर्मा, मोहित जौहर, रोहन वर्मा, पार्थ शर्मा भी उपस्थित थे।