कथावाचक बृज बिहारी शर्मा महाराज बता रहे है युवा अवस्था में क्यों जरूरी है सत्संग जानें
रायवाला: रायवाला होशियारी माता मंदिर के प्रांगण में हो रही श्रीमद् भागवत कथा के दौरान शिव पार्वती, राधा कृष्ण, गणेश भगवान की मनमोहन झाकियां प्रस्तुत की गई। झांकियों को देखकर भक्तों ने भगवान के जयकारे लगाए। आज तीसरे दिन बड़ी संख्या में ग्रामवासियों ने कथा का श्रवण किया।
कथा वाचक ने कहा कि आज के समय में युवाओं को धर्म से जुड़ने की अति आवश्यकता है क्योंकि सत्संग हमेशा जीवन में सही मार्ग दिखाता है। सत्संग से हमारा जीवन सात्विक बनता है।और सत्संग का सही समय युवा अवस्था है।
व्यास बृज बिहारी शर्मा ने युवाओं के लिए संदेश दिया है कि जो निम्न पक्तियों में इस प्रकार से है–
“आंख में पड़ेगा जाला, नाक से बहेगा नाला, लाठी पर पड़ेगा पाला।
पड़े -पड़े जिंदगानी में थूकते रहोगे पीकदानी में,
भजन क्या करोंगे जब शक्ति नहीं रहेंगी तुम्हारी बंद वाणी में,
इसीलिए भगवान का भजन करो जवानी में।।”
उनके कहने का तात्पर्य इतना है कि कहा जाता है कि बुढ़ापे में भगवान के भजन करने चाहिए, तीर्थ यात्रा करनी चाहिए लेकिन बुढ़ापे में मनुष्य शरीर इतना कमजोर हो जाता है कि अपने दैनिक कार्य नहीं हो पाते भजन और तीर्थ यात्रा तो दूर की ही बात है। आंखों से दिखना कम हो जाता है पैरों से चला नही जाता। बृज बिहारी महाराज का कहना है कि भगवान के भजन जवानी में करो ।
इसके साथ ही तीसरे दिन ध्रुव चरित्र का वर्णन किया गया। कथावाचक बृज बिहारी शर्मा महाराज ने कथा वाचन में कहा ध्रुव महाराज अपने बचपन में ही मात्र साढ़े पांच वर्ष की आयु में ही श्रीधाम वृंदा वन में ही भगवान को प्राप्त कर लिया था। 36000 वर्ष तक विश्व में राज्य किया
ध्रुव चरित्र का वर्णन करते हुए कहा कि राजा उत्तानपाद के पुत्र ध्रुव ने अपने जीवन में भगवान नारायण की घोर तपस्या करके उनको प्राप्त किया था, भगवान नारायण ने ध्रुव की तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें अक्षय पद प्रदान किया।
अभिभावकों को चाहिए कि अपने जीवन काल में अपने पुत्र और पुत्री को श्रेष्ठ आचरण की शिक्षा देनी चाहिए, जिससे कि उनका व्यक्तित्व उत्तम हो सके। बृज बिहारी महाराज जी ने कहा कि बालक ध्रुव अपनी सौतेली माता की व्यवहार से दुखी होकर उसकी जननी के मार्गदर्शन में भगवान नारायण की शरण में चले गए।
जहां पर उन्होंने छह माह तक घोर तपस्या की और बालक ध्रुव की तपस्या से प्रसन्न होकर नारायण ने उन्हें साक्षात दर्शन दिए एवं बालक को बहुत स्नेह भाव के साथ अपनी भक्ति प्रदान की और उनको अक्षय पद प्रदान किया। माता-पिता को चाहिए कि अपने बालक बालिकाओं को ध्रुव एवं प्रहलाद की कथाओं से संस्कारित करें। उनको मूल्यों और संस्कारों की शिक्षा देने का कर्तव्य स्वयं माता-पिता का है और इस बात का भली-भांति पालन करें।