श्री भरत मंदिर में श्रीमद् भागवत कथा के अष्टम दिवस पर कंस वध और रुकमणी विवाह का वर्णन सुनाया ।

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ऋषिकेश: पतित पावनी जान्हवी गंगा के तट स्थित भगवान भरत जी के पावन प्रांगण मे ब्रह्मलीन पूज्य महंत अशोक प्रपन्नाचार्य जी महाराज की पुण्य स्मृति मे आयोजित नौ दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा के अष्टम दिवस पर व्यास पीठ पर विराजमान अंतर्राष्ट्रीय पूज्य संत डा राम कमल दास वेदांती जी ने पावन प्रसंग मे भगवान श्रीकृष्ण और बलराम मथुरा मे कंस की दुष्टता के विनाश प्रसंग, रुकमणी विवाह प्रसंग पर विस्तृत चर्चा करते कथा सुनाते हुए कहा श्रीमद्भागवत कथा केअष्टम दिवस पर कंस वध प्रसंग मे कथा व्यास पूज्य वेदांती जी महाराज ने कंस वध व रुकमणी विवाह के प्रसंगों का चित्रण किया। पूज्य महाराज न कहा कि भगवान विष्णु के पृथ्वी लोक में अवतरित होने के प्रमुख कारण थे, जिसमें एक कारण कंस वध भी था।
कंस के अत्याचार से पृथ्वी त्राह त्राह जब करने लगी तब लोग भगवान से गुहार लगाने लगे। तब कृष्ण अवतरित हुए। कंस को यह पता था कि उसका वध श्रीकृष्ण के हाथों ही होना निश्चित है। इसलिए उसने बाल्यावस्था में ही श्रीकृष्ण को अनेक बार मरवाने का प्रयास किया, लेकिन हर प्रयास भगवान के सामने असफल साबित होता रहा।11 वर्ष की अल्प आयु में कंस ने अपने प्रमुख अकरुर के द्वारा मल्ल युद्ध के बहाने कृष्ण, बलराम को मथुरा बुलवाकर शक्तिशाली योद्धा और पागल हाथियों से कुचलवाकर मारने का प्रयास किया, लेकिन वह सभी श्रीकृष्ण और बलराम के हाथों मारे गए और अंत में श्रीकृष्ण ने अपने मामा कंस का वध कर मथुरा नगरी को कंस के अत्याचारों से मुक्ति दिला दी। कंस वध के बाद श्रीकृष्ण ने अपने माता-पिता वसुदेव और देवकी को जहां कारागार से मुक्त कराया, वही कंस के द्वारा अपने पिता उग्रसेन महाराज को भी बंदी बनाकर कारागार में रखा था, उन्हें भी श्रीकृष्ण ने मुक्त कराकर मथुरा के सिंहासन पर बैठाया।

कृष्ण रुकमणी विवाह प्रसंग का वर्ण करते हुए कहा कि रुकमणी जिन्हें माता लक्ष्मी का अवतार माना जाता है। वह विदर्भ साम्राज्य की पुत्री थी, जो विष्णु रूपी श्रीकृष्ण से विवाह करने को इच्छुक थी। लेकिन रुकमणी जी के पिता व भाई इससे सहमत नहीं थे, जिसके चलते उन्होंने रुकमणी के विवाह में जरासंध और शिशुपाल को भी विवाह के लिए आमंत्रित किया था, जैसे ही यह खबर रुकमणी को पता चली तो उन्होंने दूत के माध्यम से अपने दिल की बात श्रीकृष्ण तक पहुंचाई और काफी संघर्ष हुआ युद्ध के बाद अंततः श्री कृष्ण रुकमणी से विवाह करने में सफल रहे।

कृष्ण रुकमणी विवाह के उपलक्ष मे अजमेर राजस्थान से गरीब परिवार के श्री ईश्वरदास और बुली देवी परिवार का लड़का नारायण यज्ञपाल बचानी की शादी कालीकीढाल ऋषिकेश की बालिका सोरिया कश्यप से कथा मंडप मे हुई दोनो ने पूज्य स्वामी डा वेदांती जी के साथ श्री भरत मंदिर परिवार से महंत वत्सल प्रपन्न जी महाराज और श्री हर्षवर्धन शर्मा जी वरुण शर्माजी और अनेक विद्वतजनों का आशीर्वाद प्राप्त किया

अष्टम दिवस की पावन पवित्र कथा मे गुरु मां आनंद माई, अवधूत बाबा अरुण गिरी महाराज , श्री भरत मंदिर के महंत वत्सल प्रपन्नाचार्य जी, श्री हर्ष वर्धन शर्मा ,वरुण शर्मा , मधुसूधन शर्मा , रवि शास्त्री और हजारों श्रद्धालु कथा का आनंद ले रहे थे ।