ऋषिकेश: सूर्य नारायण भगवान की ध्वजारोहण के साथ छठ पूजा की शुरुआत हो चुकी है। देखिए वीडियो

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ऋषिकेश -आज त्रिवेणी घाट पर छठ पूजा की शुरुआत सूर्यनारायण ध्वजारोहण के साथ हो चुका है जिसे 28 वर्षों से बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है जिसमें अनेकों प्रकार के सांस्कृतिक कार्यक्रम भी किए जाते हैं। छठ कार्तिक शुक्ल पक्ष के षष्ठी को मनाया जाने वाला एक हिन्दू पर्व है। सूर्योपासना का यह अनुपम लोकपर्व मुख्य रूप से बिहार, झारखण्ड, पश्चिम बंगाल, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में मनाया जाता है।

कहा जाता है यह पर्व मैथिल,मगध और भोजपुरी लोगो का सबसे बड़ा पर्व है ये उनकी संस्कृति है। छठ पर्व बिहार मे बड़े धुम धाम से मनाया जाता है। ये एक मात्र ही बिहार या पूरे भारत का ऐसा पर्व है जो वैदिक काल से चला आ रहा है और ये बिहार कि संस्कृति बन चुका हैं। यहा पर्व बिहार कि वैदिक आर्य संस्कृति कि एक छोटी सी झलक दिखाता हैं। ये पर्व मुख्यः रुप से ॠषियो द्वारा लिखी गई ऋग्वेद मे सूर्य पूजन, उषा पूजन और आर्य परंपरा के अनुसार बिहार मे यहा पर्व मनाया जाता हैं।

छठ पूजा चार दिन का सबसे बड़ा उत्सव होता है जिसका इन्जार लोग सालो से किया जाता है।

शुक्रवार को छठ पूजा की शुरुआत सूर्य नारायण ध्वजारोहण कर साथ शुरुआत हो चुकी है सर्वप्रथम आज पहले दिन नहाय खाय किया जाता है जिसमे लौकी की सब्जी चना का दाल चावल बनाया जाता है दूसरे दिन खरना किया जाता है जिसमे दिनभर का निर्जल उपवास किया जाता है और शाम को खीर रोटी का भोग लगाया जाता है भोग लगाने के उपरांत उस खीर और रोटी का प्रसाद खाया जाता है जिसके बाद फिर से निर्जला उपवास प्रारंभ हो जाता है और तीसरे दिन घर में चक्की में अपने हाथों से पीसे गए गेहूं, चावल के आटे से ठेकुआ और लड्डू को देसी घी में चूल्हे पर ही बनाया जाता है जिसमे सारे बर्तन पीतल के इस्तेमाल किये जाते है। अगर जिससे पीतल के बर्तन नही हो पाता वो मिट्टी के बर्तन का प्रयोग करते हैं और प्रसाद बनाया जाता है उसको तैयार करने के बाद डलिया सजाया जाता है। जो जैसे मन्नत करते हैं भगवान से उनके उतने डलिया होता है जैसे किसी के दो होते हैं तीन होते हैं डलिया इसी प्रकार से उसके उपरांत पूरा परिवार गंगा जी जाने के लिए नए नए कपड़े पहनकर तैयार होते हैं व्रती जब घाट पर जाते है तो उनके हाथों में कलश होता है और उनपर दिया रखा जाता है जिसे जलते हुए रखा जाता है। सभी लोग घाट पर पहुंच कर ढलते सूरज को अरग देते है। फिर चौथे दिन उगते हुए सूरज को अरग दिया जाता है और छठ पूजा की समाप्ति होती है ।