उत्तरकाशी का धराली गांव, प्रकृति का प्रकोप या हमारी लापरवाही?

उत्तरकाशी : उत्तराखंड के धराली गांव में आई भीषण आपदा ने एक बार फिर प्रकृति और मानव के संतुलन की अनदेखी का भयावह परिणाम दिखा दिया है। मंगलवार दोपहर 1:45 बजे के आसपास आई इस आपदा में बादल फटने से खीर गंगा नदी में अचानक तेज़ बाढ़ आ गई, जिससे गांव का बड़ा हिस्सा मलबे में दब गया।
अब तक की जानकारी के अनुसार 400 से अधिक लोगों को सुरक्षित निकाला जा चुका है, जबकि 100 से अधिक लोग अभी भी लापता हैं। भारतीय सेना, NDRF, SDRF, ITBP और स्थानीय प्रशासन मिलकर दिन-रात राहत एवं बचाव कार्य में जुटे हैं। भारतीय वायुसेना के चिनूक और MI-17 हेलीकॉप्टरों ने दुर्गम क्षेत्रों से दर्जनों लोगों को निकाला।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने खुद मौके पर पहुंचकर हालात का जायजा लिया और कहा कि “सरकार हर पीड़ित के साथ खड़ी है, किसी भी संसाधन की कमी नहीं आने दी जाएगी।” केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री कार्यालय से भी निरंतर सहयोग मिल रहा है।
भू-वैज्ञानिकों का कहना है कि धराली क्षेत्र पहले से ही एक संवेदनशील क्षेत्र रहा है। इस गांव को बार-बार ‘बारूद का ढेर’ कहकर चेतावनी दी जाती रही, लेकिन पर्यटन और अवैज्ञानिक विकास की होड़ में इन चेतावनियों को नजरअंदाज किया गया। भागीरथी नदी के प्रवाह में हस्तक्षेप, नदीपात्र में निर्माण, और अविकसित ढांचागत योजनाएं इस त्रासदी के मूल कारण माने जा रहे हैं।
विशेषज्ञों ने इसे 2013 की केदारनाथ आपदा जैसी स्थिति बताया है, जहां मानवीय लापरवाही और प्रकृति के संतुलन को भंग करने की कीमत लोगों की जान से चुकानी पड़ी।
अब आगे क्या?
धराली की इस घटना ने पूरे उत्तराखंड को झकझोर दिया है। यह केवल एक प्राकृतिक आपदा नहीं, बल्कि नीति निर्माताओं, योजनाकारों और आम नागरिकों के लिए एक चेतावनी है कि प्रकृति से खिलवाड़ का अंजाम कितना गंभीर हो सकता है।वर्तमान में क्षेत्र में राहत शिविर लगाए जा रहे हैं, और पुनर्वास योजनाओं पर काम शुरू हो गया है। सरकार ने लापता लोगों की खोज के लिए विशेष खोज अभियान भी शुरू कर दिए हैं।
धराली की यह त्रासदी हमारे सामने यह प्रश्न छोड़ जाती है क्या हम अब भी सीखेंगे? या फिर अगली तबाही तक सबक भूल जाएंगे?
