उत्तराखंड में बढ़ती C-section डिलीवरी। क्या हम नॉर्मल डिलीवरी से दूर जा रहे हैं?
उत्तराखंड हमेशा से अपनी सादगी, मेहनतकश जीवनशैली और मजबूत महिलाओं के लिए जाना जाता है। पहाड़ की महिलाएं कभी खेतों से लेकर परिवार तक सब संभालती थीं, और उनका शरीर इतना सक्षम होता था कि प्रसव स्वाभाविक रूप से हो जाता था। लेकिन वक्त के साथ बहुत कुछ बदल गया है। आज जहां जीवन आसान हुआ है, वहीं प्राकृतिक मातृत्व का तरीका धीरे-धीरे बदलता जा रहा है। अब राज्य में C-section डिलीवरी के मामले बढ़ते जा रहे हैं, जो चिंता की बात है।

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे (NFHS-5, 2019–21) के मुताबिक, उत्तराखंड में करीब 20 प्रतिशत महिलाएं सर्जरी से डिलीवरी करवाती हैं। सरकारी अस्पतालों में यह दर लगभग 13 से 15 प्रतिशत है, जबकि निजी अस्पतालों में 40 प्रतिशत तक पहुंच चुकी है। पहले जहां यह ऑपरेशन सिर्फ जरूरत के वक्त किया जाता था, अब यह “सुविधा” और “समय तय करने” का जरिया बन गया है।
इसके पीछे कई कारण हैं। आज की महिलाओं की जीवनशैली पहले जैसी नहीं रही। देर से शादी, 30 साल के बाद मातृत्व, वजन बढ़ना, थायरॉइड और ब्लड प्रेशर जैसी समस्याएं अब आम हो गई हैं। वहीं कई महिलाएं लेबर पेन के डर से या शुभ मुहूर्त देखकर ऑपरेशन को सही मान लेती हैं। कुछ निजी अस्पताल भी जल्दी और तयशुदा डिलीवरी को प्राथमिकता देते हैं, जिससे नॉर्मल डिलीवरी के लिए धैर्य और समय की कमी दिखती है।
लेकिन यह बढ़ता रुझान मां और बच्चे दोनों के लिए नुकसानदेह है। C-section एक बड़ी सर्जरी है। इसमें पेट और गर्भाशय में चीरा लगाया जाता है। इससे रिकवरी में वक्त लगता है, संक्रमण का खतरा बढ़ता है और अगली प्रेग्नेंसी में जटिलताएं हो सकती हैं। बार-बार सर्जरी से गर्भाशय कमजोर हो जाता है और बच्चे की इम्युनिटी व सांस लेने की क्षमता पर भी असर पड़ सकता है।
अगर यही रफ्तार जारी रही तो आने वाले समय में उत्तराखंड में C-section की दर 25 प्रतिशत से भी ऊपर जा सकती है। इससे मातृ स्वास्थ्य पर सीधा असर पड़ेगा और नॉर्मल डिलीवरी धीरे-धीरे दुर्लभ होती जाएगी। इसलिए अब वक्त है कि महिलाएं, डॉक्टर, परिवार और सरकार सभी मिलकर इस दिशा में काम करें।
गर्भावस्था के दौरान हल्की एक्सरसाइज़, योग, सही खानपान और सकारात्मक माहौल बहुत फर्क डालते हैं। डॉक्टरों को भी बिना वजह सर्जरी की सलाह देने से बचना चाहिए और परिवारों को महिलाओं का हौसला बढ़ाना चाहिए, न कि डर। सरकार की भूमिका भी अहम है । निजी अस्पतालों में C-section की दर पर निगरानी रखी जाए और Normal Delivery Support Units को बढ़ावा दिया जाए।
उत्तराखंड की मिट्टी हमेशा से मातृत्व, साहस और जीवन देने की शक्ति की प्रतीक रही है। बस ज़रूरत है उस प्राकृतिक शक्ति पर फिर से भरोसा करने की।
