शेषनाग से कुंडलिनी तक: नागपंचमी का गहन दार्शनिक अर्थ समझाया

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ऋषिकेश : नागपंचमी के पावन पर्व की समस्त श्रद्धालुजनों को परमार्थ निकेतन से मंगलमय शुभकामनाएँ देते हुये स्वामी चिदानन्द सरस्वती  ने कहा कि यह पर्व न केवल श्रद्धा और भक्ति का प्रतीक है, अपितु हमारी सनातन      संस्कृति की उस अद्भुत परंपरा को भी उजागर करता है, जो समस्त सृष्टि के साथ सह-अस्तित्व, संवेदना और सामंजस्य का संदेश देती है।स्वामी  ने कहा कि सनातन धर्म में नागों को अत्यंत पवित्र और दिव्य माना गया है। भगवान शिव ने वासुकी नाग को अपने गले में हार के रूप में धारण कर नाग देवता के प्रति श्रद्धा का संदेश दिया। भगवान विष्णु स्वयं शेषनाग के शैय्या पर विराजमान होकर यह संदेश देते हैं कि नाग, शक्ति, संतुलन और धैर्य का प्रतीक हैं। हमारे धर्मग्रंथों में नागों का उल्लेख कई रूपों में आता है, चाहे वो कद्रू के पुत्र हों, शेषनाग हों, वासुकी हों, तक्षक हों या कर्कोटक। इन सबका स्थान देवत्व और संरक्षण के संदर्भ में अत्यंत उच्च है।

नागपंचमी का पर्व के अवसर पर वर्षा ऋतु अपने चरम पर होती है और सर्पों का प्राकृतिक आवास जलभराव और भूमि परिवर्तन के कारण प्रभावित होता है। ऐसे समय में हम नागों की पूजा कर न केवल धार्मिक आस्था प्रकट करते हैं, बल्कि उनके संरक्षण का संकल्प भी लेते हैं। यह पर्व हमें संदेश देता है कि सर्प भी उसी प्रकृति का अंश हैं, जिससे हम स्वयं उत्पन्न हुए हैं।आज नागपंचमी का पर्व हमें यह संदेश देता है कि हम पंचतत्वों, पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश के प्रति कृतज्ञता और श्रद्धा रखें। नाग इन पंचतत्वों से गहराई से जुडे हुए हैं, विशेषकर पृथ्वी और जल से। इस दिन नागों की पूजा कर हम उन अदृश्य संतुलनों को स्वीकार करते हैं, जो ब्रह्मांड को सुचारु रूप से संचालित करते हैं।नागदेवता की पूजा करने से केवल भय दूर नहीं होता, बल्कि जीवन में आध्यात्मिक ऊर्जा, कुंडलिनी जागरण और शुभता का संचार होता है। योग परंपरा में नाग को ‘कुंडलिनी शक्ति’ का प्रतीक माना गया है, जो मानव चेतना के सात चक्रों को जाग्रत कर आत्मबोध की ओर ले जाती है।आज जब पूरी दुनिया जलवायु परिवर्तन, जैवविविधता ह्रास और पारिस्थितिक असंतुलन की चुनौतियों से जूझ रही है, तब नागपंचमी जैसा पर्व हमें याद दिलाता है कि यदि हम प्रत्येक प्राणी, प्रत्येक वृक्ष, प्रत्येक नदी और प्रत्येक जीवधारी के साथ करुणा और सहअस्तित्व का भाव नहीं रखेंगे, तो हमारी अपनी अस्तित्व श्रंृखला टूट जाएगी। नाग देवता की पूजा इसी सह-अस्तित्व की स्वीकारोक्ति है।

हमारे ऋषियों ने हमें संदेश दिया कि धर्म केवल मंदिरों तक सीमित नहीं है, वह तो प्रत्येक जीव मात्र में ईश्वर का दर्शन करने की साधना है। नागपंचमी इस दर्शन का सजीव उदाहरण है। आज इस पर्व पर हम सभी यह संकल्प लें कि हम केवल पूजा तक सीमित न रहें, बल्कि सभी जीव-जंतुओं के प्रति संवेदनशील व्यवहार अपनाएँ।नागपंचमी केवल एक पर्व नहीं, बल्कि यह सनातन संस्कृति की गहराइयों में छिपी उस चेतना की अभिव्यक्ति है, जो सृष्टि के प्रत्येक अंश में ईश्वर का निवास मानती है। यह पर्व हमें सिखाता है कि भय नहीं, श्रद्धा से जियें, दोहन नहीं, संवर्धन करें, और अधिकार नहीं, कर्तव्य का भाव रखें।इस पावन अवसर पर हम सब मिलकर संकल्प लें कि हम न केवल नाग देवता की पूजा करेंगे, बल्कि धरती पर हर जीव के प्रति दया, करुणा और सह-अस्तित्व का भाव रखते हुए जीवन को परमात्मा की सेवा का माध्यम बनाएँगे।

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