सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला, अब दृष्टिहीन भी बन सकते हैं जज
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को ऐतिहासिक फैसला दिया है। उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि अब दृष्टिहीन लोग भी जज बन सकते हैं।
भारत की सर्वोच्च अदालत यानी कि सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि दृष्टिहीन लोग भी जज बन सकते हैं। कोर्ट ने कहा है कि दृष्टिहीन लोगों को भी न्यायिक सेवाओं में नियुक्ति का अधिकार है। आइए जानते हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को लेकर और क्या कुछ कहा है।
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को ऐतिहासिक फैसला दिया है। उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि अब दृष्टिहीन लोग भी जज बन सकते हैं।
भारत की सर्वोच्च अदालत यानी कि सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि दृष्टिहीन लोग भी जज बन सकते हैं। कोर्ट ने कहा है कि दृष्टिहीन लोगों को भी न्यायिक सेवाओं में नियुक्ति का अधिकार है। आइए जानते हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को लेकर और क्या कुछ कहा है।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
इस मामले पर फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने साफ तौर पर कहा है कि दिव्यांगता के आधार पर न्यायिक सेवाओं से किसी को बाहर नहीं रखा जा सकता। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में मध्य प्रदेश सरकार के नियम को रद्द कर दिया है।
सुप्रीम कोर्ट ने आज अन्य फैसले भी दिए
सुप्रीम कोर्ट ने एक अन्य फैसले में छत्तीसगढ़ कोयला घोटाला मामले में निलंबित आईएएस अधिकारी रानू साहू, सौम्या चौरसिया और व्यवसायी सूर्यकांत तिवारी को अंतरिम जमानत दी है। ये अंतरिम जमानत एंटी करप्शन ब्रांच की ओर से दाखिल मुकदमे में दी गई है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मामले में जांच मे काफी समय लगेगा इसलिए समय लेने वाली प्रक्रिया को ध्यान में रखते हुए याचिकाकर्ताओं को अंतरिम जमानत पर रिहा करना उचित समझते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि किसी गवाह को प्रभावित करने, सबूतों से छेड़छाड़ करने या जांच में बाधा डालने में लिप्त पाया जाता है, तो राज्य सरकार अंतरिम जमानत रद्द कराने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटा सकती है और उस स्थिति में अंतरिम जमानत रद्द कर दी जाएगी।
जनहित याचिका पर केंद्र को नोटिस
सुप्रीम कोर्ट ने सूचना प्रौद्योगिकी (जनता द्वारा सूचना तक पहुंच को अवरुद्ध करने की प्रक्रिया और सुरक्षा उपाय) नियम, 2009 के कुछ नियमों को चुनौती देने वाली एक जनहित याचिका पर केंद्र को नोटिस जारी किया है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से इस मामले में छह सप्ताह के भीतर जवाब मांगा है। सॉफ्टवेयर फ्रीडम लॉ सेंटर की याचिका में कहा गया है कि ‘एक्स’ जैसे प्लेटफॉर्म से जानकारी हटाने से पहले इसके प्रवर्तक (originator) को नोटिस दिया जाना चाहिए।

