लोकपाल का ऐतिहासिक आदेश: हाई कोर्ट के न्यायाधीश के खिलाफ भी सुना जाएगा भष्ट्राचार का केस, सुप्रीम कोर्ट ने लिया स्वत: संज्ञान
लोकपाल ने अपने एक महत्वपूर्ण आदेश में कहा है कि उच्च न्यायालय के न्यायाधीश लोकपाल कानून की धारा 14 के दायरे में आते हैं। यानी स्पष्ट है कि उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के खिलाफ भ्रष्टाचार की शिकायतों पर लोकपाल विचार कर सकता है। हालांकि लोकपाल ने मामले पर आगे बढ़ने से पहले यह आदेश और शिकायत और संबंधित सामग्री विचार के लिए प्रधान न्यायाधीश (सीजेआइ) को भेजी है।
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सर्वोच्च न्यायालय ने लोकपाल के इस आदेश को देखते हुए मामले पर स्वत: संज्ञान लेकर सुनवाई करने का निर्णय लिया है। गुरुवार को सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ न्यायाधीशों की तीन सदस्यीय विशेष पीठ मामले पर विचार करेगी। हालांकि चीफ जस्टिस सुनवाई पीठ में शामिल नहीं हैं। मामले पर चीफ जस्टिस के बाद वरिष्ठता में पहले, दूसरे और तीसरे क्रम में आने वाले वरिष्ठतम न्यायाधीश बीआर गवई, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस अभय एस ओका की तीन सदस्यीय विशेष पीठ मामले पर सुनवाई करेगी।
सुनवाई का खोलता है एक नया दरवाजा
लोकपाल का 27 जनवरी का यह आदेश बहुत महत्वपूर्ण और दूरगामी परिणाम वाला है और उतना ही महत्वपूर्ण सुप्रीम कोर्ट का स्वत: संज्ञान लेकर सुनवाई करना है क्योंकि लोकपाल का आदेश उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के खिलाफ भ्रष्टाचार की शिकायतों पर सुनवाई का एक नया दरवाजा खोलता है।
मौजूदा मामले में लोकपाल ने आदेश तो वेबसाइट पर डाला है लेकिन कानून में गोपनीयता बनाए रखने की शर्त को ध्यान में रखते हुए संबंधित न्यायाधीश और राज्य का नाम आदेश से हटा दिया गया है। मामले के मुताबिक लोकपाल को दो शिकायतें मिलीं थीं जिनमें उच्च न्यायालय के वर्तमान अतिरिक्त न्यायाधीश पर एक अतिरिक्त जिला जज और उसी उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश को एक कंपनी के मामले में प्रभावित करने का आरोप लगाया गया है।
न्यायमूर्ति एएम खानविल्कर की अध्यक्षता वाली लोकपाल की पीठ ने क्या कहा?
आरोप के मुताबिक, जिस उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के खिलाफ शिकायत की गई है, वह पहले जब वकालत करता था तो वह प्राइवेट कंपनी उसकी क्लाइंट थी। न्यायमूर्ति एएम खानविल्कर की अध्यक्षता वाली लोकपाल की पीठ ने आदेश में कहा है कि उनका फैसला सिर्फ इस कानूनी मुद्दे पर है कि क्या संसद के कानून के जरिए स्थापित उच्च न्यायालय के न्यायाधीश लोकपाल कानून 2013 की धारा 14 के दायरे में आते हैं? और इसका जवाब सकारात्मक है। यानी उच्च न्यायालय के न्यायाधीश कानून की धारा 14 के दायरे में आते हैं।
हालांकि लोकपाल ने आदेश में साफ किया है कि अभी वह शिकायत में लगाए गए आरोपों की मेरिट पर विचार नहीं प्रकट कर रहे हैं। लोकपाल ने कहा है कि उच्च न्यायालय के न्यायाधीश लोकसेवक की परिभाषा में आते हैं और लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम 2013 न्यायाधीशों को इससे बाहर नहीं करता। जिन श्रेणियों को इस कानून के दायरे से बाहर रखा गया है, उनका स्पष्ट रूप से जिक्र कानून में किया गया है। लेकिन, संसद द्वारा स्थापित उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को विशिष्ट तौर पर इस तरह के अपवाद में नहीं रखा गया है। ऐसे में वे कानून की धारा 14 की उपधारा (एफ) (वन) में आते हैं।
सीजेआई की इजाजत के बगैर नहीं दर्ज कर सकते केस
हालांकि लोकपाल ने आदेश में कहा है कि न्यायाधीशों को फर्जी अभियोजन से बचाने के बारे में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ का के. वीरास्वामी मामले में दिया गया फैसला है जो कहता है कि हाई कोर्ट के किसी भी न्यायाधीश, हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश या सुप्रीम कोर्ट के किसी भी न्यायाधीश के खिलाफ कोई भी केस सीजेआइ की अनुमति के बगैर नहीं दर्ज किया जा सकता।
लोकपाल ने कहा है कि मामले के संभावित परिणामों को देखते हुए सारी सामग्री विचार के लिए प्रधान न्यायाधीश को भेज रहे हैं। सीजेआइ के निर्देशों का इंतजार करते हुए फिलहाल मामले की आगे सुनवाई टाली जाती है।हालांकि लोकपाल ने पूर्व के एक आदेश में माना था कि सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश और चीफ जस्टिस आफ इंडिया लोकपाल के दायरे में नहीं आते। वह आदेश लोकपाल ने पूर्व सीजेआइ के खिलाफ आयी एक शिकायत पर दिया था।
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