मानसून में बालों को झड़ने से बचाएंगे गुड़हल के फूल, जानें तेल बनाने का आसान तरीका

मानसून सीजन आते ही बालों से जुड़ी परेशानियाँ शुरू हो जाती हैं, क्योंकि हवा में नमी बढ़ने की वजह से बाल कमजोर होकर टूटने लगते हैं और फ्रिजी दिखाई देते हैं, लेकिन अब घबराने की जरूरत नहीं है—गुड़हल के फूलों (Hibiscus Oil to Stop Hair Fall) से बालों की कई समस्याओं को दूर किया जा सकता है। इसमें मौजूद गुण बालों को घना, मजबूत और चमकदार बनाते हैं, इसलिए बारिश के मौसम में गुड़हल के फूलों से बना तेल लगाना बेहद फायदेमंद हो सकता है। आज हम आपको इसी खास तेल को बनाने की विधि बताएंगे, जो मानसून में बालों की देखभाल के लिए अत्यंत लाभकारी साबित होगा।
गुड़हल के फूल के फायदे
गुड़हल के फूल में विटामिन-सी, एमिनो एसिड और एंटीऑक्सीडेंट्स भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं, जो बालों की जड़ों को पोषण देते हैं। इसके अलावा, यह स्कैल्प में ब्लड सर्कुलेशन को बढ़ाता है, जिससे बालों का विकास तेजी से होता है।
- बालों का झड़ना कम करता है- इसमें मौजूद पोषक तत्व बालों के रोम छिद्रों को मजबूत बनाते हैं।
- डैंड्रफ दूर करता है- गुड़हल में एंटी-फंगल गुण होते हैं, जो स्कैल्प की खुजली और रूसी को दूर करते हैं।
- बालों को घना और लंबा बनाता है- यह बालों के विकास को प्रोत्साहित करता है।
- प्रीमेच्योर ग्रेइंग रोकता है- गुड़हल बालों को काला और चमकदार बनाए रखने में मदद करता है।
गुड़हल का तेल बनाने की विधि
सामग्री-
- 10-12 ताजे गुड़हल के फूल
- 1/2 कप नारियल तेल या तिल का तेल
- 5-6 करी पत्ते
- 1 चम्मच मेथी दाना
बनाने का तरीका-
- सबसे पहले गुड़हल के फूलों की पंखुड़ियों को अच्छी तरह धोकर सुखा लें।
- एक पैन में नारियल तेल या तिल का तेल गर्म करें।
- अब इसमें गुड़हल की पंखुड़ियां डालें और धीमी आंच पर 5-7 मिनट तक पकाएं।
- यदि आप चाहें, तो इसमें करी पत्ते और मेथी दाना भी मिला सकते हैं, जो बालों के विकास में मददगार होते हैं।
- तेल को ठंडा होने दें और फिर छानकर किसी शीशी में भर लें।
इस्तेमाल करने का तरीका-
- इस तेल को हफ्ते में 2-3 बार स्कैल्प पर लगाएं और हल्के हाथों से मसाज करें।
- 30 मिनट से 1 घंटे तक लगा रहने दें और फिर माइल्ड शैम्पू से धो लें।
- नियमित इस्तेमाल से बालों का झड़ना कम होगा और बाल मजबूत व घने होंगे।
Disclaimer: गुड़हल के तेल के उपयोग से प्राप्त परिणाम व्यक्ति के बालों के प्रकार, मौजूदा स्थिति और नियमितता पर निर्भर करते हैं। यहां दिए गए उपाय पारंपरिक प्रथाओं और अनुभवों पर आधारित हैं, न कि वैज्ञानिक अध्ययनों पर।
