स्वर्णप्राशन: परंपरा में विज्ञान, बाल स्वास्थ्य का प्राचीन रहस्य”

भारतीय आयुर्वेद परंपरा में स्वर्णप्राशन संस्कार का विशेष महत्व बताया गया है। यह केवल एक औषधि नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक और वैज्ञानिक प्रतिरक्षण विधि है, जो बच्चे के शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक विकास को संतुलित रूप से बढ़ावा देती है।
1. प्रतिरक्षा शक्ति (Immunity) बढ़ाता है —यह बच्चे को संक्रमणों और मौसमी बीमारियों से बचाने में मदद करता है।
2. बुद्धि, स्मरण शक्ति और ध्यान में वृद्धि करता है —मस्तिष्क की कार्यक्षमता और एकाग्रता को सुदृढ़ करता है।
3. पाचन और भूख में सुधार करता है —बच्चे की आंतरिक अग्नि को प्रज्वलित कर पोषण को बेहतर तरीके से अवशोषित करता है।
4. त्वचा का वर्ण और शारीरिक विकास बढ़ाता है —स्वर्ण भस्म और औषधीय घृत मिलकर शरीर को तेजस्विता प्रदान करते हैं।
5. वाणी और मानसिक विकास में सहायक —यह मानसिक संतुलन और आत्मविश्वास को बढ़ाता है।
6. रसायन के रूप में दीर्घायु और रोगनिवारक प्रभाव देता है —दीर्घकालिक सेवन से रोग प्रतिरोधक क्षमता में स्थायी सुधार होता है।
स्वर्णप्राशन संस्कार भारतीय ज्ञान परंपरा की उस अनमोल धरोहर का हिस्सा है,जो आधुनिक विज्ञान के साथ भी सामंजस्य रखती है।यह संस्कार हमें याद दिलाता है कि “स्वास्थ्य ही नहीं, संस्कार भी सबसे बड़ा धन है।”

