निनाद के मंच पर लोक संस्कृति का रंग लोक नृत्य और गीतों ने बांधा समां, दर्शक हुए मंत्रमुग्ध
देहरादून : गढ़ी कैट नींबूवाला स्थित हिमालय संस्कृति सभागार में आयोजित संस्कृति विभाग, उत्तराखंड के वार्षिक कार्यक्रम “निनाद” का समापन लोक संस्कृति की झलकियों के साथ भव्य रूप में हुआ। इस अवसर पर लोक कलाकारों ने एक से बढ़कर एक प्रस्तुतियां दीं, जिनमें उत्तराखंड की पारंपरिक लोक धुनें, नृत्य, गीत और रीति-रिवाजों की झलक देखने को मिली। पूरा सभागार तालियों की गड़गड़ाहट और लोकसंगीत की सुरलहरियों से गूंज उठा।

कार्यक्रम के दौरान मंच पर लोक कलाकारों ने मंगल गायन, तांदी और रासो लोक नृत्य की अद्भुत प्रस्तुतियां दीं, जिन्होंने दर्शकों का मन मोह लिया। वहीं चोलिया, छपेली और हारूल जैसे पारंपरिक लोक नृत्यों की प्रस्तुतियों ने सभी को झूमने पर मजबूर कर दिया। इन नृत्यों के माध्यम से कलाकारों ने उत्तराखंड की लोकसंस्कृति, परंपराओं और देवभूमि की सामाजिक एकता का सुंदर चित्र प्रस्तुत किया।आयोजन की शुरुआत शुभ मंगल ध्वनि और दीप प्रज्वलन के साथ हुई। इसके बाद मंच पर एक के बाद एक मनमोहक प्रस्तुतियां दी गईं। नवज्योति संस्कृति समिति और सुनहरे गंगा संस्था के कलाकारों ने लोक गीतों और सामूहिक नृत्यों से वातावरण को लोक रस में सराबोर कर दिया।
आंचल संस्कृति समिति हल्द्वानी, परी लोक संस्कृति गीत एवं सामाजिक संस्था, और धार्मिक गार्ड जीवनी के कलाकारों ने भी अपनी पारंपरिक वेशभूषा और भावपूर्ण नृत्य भंगिमाओं से दर्शकों को उत्तराखंड की लोक धरोहर का जीवंत अनुभव कराया। इन प्रस्तुतियों के माध्यम से पर्वतीय जनजीवन, पारिवारिक संस्कार, और धार्मिक आस्थाओं का चित्रण किया गया, जिसने दर्शकों को अपने मूल संस्कृति की याद दिला दी।
दूरस्थ मोरी क्षेत्र से आए कलाकारों ने अपनी विशिष्ट शैली में मंगल गायन, चांदी और रासो लोक नृत्य प्रस्तुत किए, जिनमें स्थानीय बोली, संगीत और नृत्य का ऐसा संगम देखने को मिला जो सीधे लोगों के दिलों को छू गया। कलाकारों की लय, ताल और नृत्य मुद्रा इतनी सजीव थी कि सभागार में मौजूद हर व्यक्ति मंत्रमुग्ध हो गया। कार्यक्रम का एक प्रमुख आकर्षण रही कथक नृत्यांगना शिवानी मिश्रा और उनके छात्रों की विशेष प्रस्तुति। शिवानी मिश्रा के निर्देशन में छात्रों ने शास्त्रीय नृत्य और लोक रागों का ऐसा समावेश पेश किया जिसने लोक और आधुनिकता के बीच सेतु का काम किया। उनकी प्रस्तुति पर दर्शकों ने खड़े होकर तालियां बजाईं।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि संस्कृति सचिव एवं महानिदेशक युगल किशोर पंत ने अपने संबोधन में कहा कि “निनाद केवल एक सांस्कृतिक कार्यक्रम नहीं, बल्कि उत्तराखंड की लोक आत्मा का उत्सव है। इस मंच के माध्यम से प्रदेश की परंपराओं को नई पीढ़ी तक पहुंचाने का प्रयास किया जा रहा है।” उन्होंने आयोजन समिति और सभी कलाकारों को इस भव्य सांस्कृतिक महोत्सव को सफल बनाने के लिए बधाई दी।समापन अवसर पर संस्कृति विभाग के अधिकारियों, विभिन्न सामाजिक संस्थाओं के प्रतिनिधियों और बड़ी संख्या में संस्कृति प्रेमियों ने भाग लिया। सभागार में लोक संस्कृति के संरक्षण और संवर्धन को लेकर उत्साह साफ दिखाई दिया।
अंत में सभी कलाकारों को प्रतीक चिह्न और प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया गया। मंच से लोक कलाकारों ने यह संदेश दिया कि आधुनिकता की इस दौड़ में भी लोक संस्कृति को जिंदा रखना ही हमारी असली पहचान है। कार्यक्रम के अंत में सामूहिक लोकगीत “बेड़ी दी गौंछ, जागर दी रात” की प्रस्तुति के साथ “निनाद” का समापन हुआ, जिसने पूरे वातावरण को भक्ति और लोक भावनाओं से भर दिया।
