हज़ार तप के बराबर पुण्य देती है वरुथिनी एकादशी – जानिए व्रत की कथा, विधि और नियम


आज का दिन वरुथिनी एकादशी के व्रत को समर्पित है, जिसे भगवान विष्णु के भक्त अत्यंत श्रद्धा और भक्ति भाव से मनाते हैं। यह व्रत वर्ष के प्रमुख एकादशियों में से एक है और शास्त्रों में इसे विशेष पुण्य प्रदान करने वाला माना गया है।
इस शुभ दिन पर श्रद्धालु भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का विधिपूर्वक अभिषेक करते हैं, और पूजा के दौरान उनके सामने दीप जलाते हैं। विशेष रूप से तुलसी के पौधे के समीप दीपक जलाने का धार्मिक महत्व होता है, जिसे सुख-समृद्धि और शुद्धता का प्रतीक माना जाता है।
वरुथिनी एकादशी के दिन दान और पुण्य के कार्य, जैसे कि अन्न, वस्त्र, और धन का दान करना अत्यंत शुभ माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने से हज़ार वर्षों तक तप करने के समान पुण्य की प्राप्ति होती है। यह व्रत न केवल पापों से मुक्ति दिलाता है, बल्कि मोक्ष की दिशा में भी अग्रसर करता है।
व्रत की तिथि और पारण समय
- एकादशी तिथि प्रारंभ: 23 अप्रैल 2025, शाम 4:43 बजे
- एकादशी तिथि समाप्त: 24 अप्रैल 2025, दोपहर 2:32 बजे
- व्रत पारण (उपवास तोड़ने का समय): 25 अप्रैल 2025, सुबह 5:46 बजे से 8:23 बजे तक
पूजा विधि और व्रत की प्रक्रिया
- स्नान और संकल्प: ब्राह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें और व्रत का संकल्प लें।
- पूजा स्थल की तैयारी: घर के मंदिर को साफ करके भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
- पूजन सामग्री: गंगाजल, चंदन, अक्षत, पीले फूल, तुलसी के पत्ते, धूप, दीप आदि से पूजा करें।
- मंत्र जाप: “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जाप करें और विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें।
- व्रत कथा: वरुथिनी एकादशी की व्रत कथा का पाठ करें।
- भोग अर्पण: भगवान को फलाहार अर्पित करें और आरती करें।
- दान-पुण्य: गरीबों और जरूरतमंदों को भोजन, वस्त्र या धन का दान करें।
- व्रत पारण: द्वादशी तिथि में शुभ मुहूर्त में व्रत का पारण करें।
वरुथिनी एकादशी व्रत कथा
प्राचीन काल में नर्मदा नदी के तट पर मान्धाता नामक राजा राज्य करते थे। एक दिन जब वह जंगल में तपस्या कर रहे थे, तभी एक जंगली भालू आया और राजा का पैर चबाने लगा। राजा ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की, और भगवान ने प्रकट होकर भालू का वध किया। भगवान ने राजा को मथुरा जाकर वराह अवतार की पूजा करने और वरुथिनी एकादशी का व्रत करने का निर्देश दिया। राजा ने ऐसा किया और उसका अंग पुनः स्वस्थ हो गया।
व्रत के दौरान ध्यान रखने योग्य बातें
- कांसे के बर्तन में भोजन न करें।
- मांस, मसूर की दाल, चना, कोदो, शाक, मधु, परान्न, पुनर्भोजन और मैथुन से परहेज करें।
- जुआ खेलना, नींद लेना, पान खाना, दांतुन करना, दूसरे की निंदा करना, चुगली करना, चोरी, हिंसा, क्रोध और असत्य-भाषण से बचें।
Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं, पुराणों और सामान्य जन-श्रुति पर आधारित है। यह केवल जनसाधारण को धार्मिक व सांस्कृतिक जानकारी देने के उद्देश्य से प्रस्तुत की गई है। पाठकों से अनुरोध है कि किसी भी धार्मिक कार्य को करने से पहले संबंधित पंडित, पुरोहित या विशेषज्ञ की सलाह अवश्य लें। लेखक और प्रकाशक इस जानकारी की प्रामाणिकता या इसके अनुपालन से प्राप्त किसी भी फल की जिम्मेदारी नहीं लेते।
