देहरादून के कुठालगेट और साई मंदिर तिराहे पर गढ़ कुमाऊं संस्कृति की झलक उभरी
देहरादून: राज्य की राजधानी, अब केवल यातायात से गुजरने वाला शहर नहीं रहा, बल्कि उत्तराखंड की लोक संस्कृति, इतिहास और परंपराओं को प्रदर्शित करने वाली एक जीवंत सांस्कृतिक गैलरी बनता जा रहा है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की प्रेरणा और मार्गदर्शन में जिला प्रशासन ने शहर के प्रमुख चौराहों को नई पहचान देने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। इसी श्रृंखला में कुठालगेट और साई मंदिर तिराहे को गढ़वाल कुमाऊं संस्कृति के आकर्षक दिया गया है।
जिला प्रशासन की इस पहल के तहत चौराहों को नई थीम के साथ डिज़ाइन किया गया है, जिसमें उत्तराखंड की सांस्कृतिक धरोहर, पारंपरिक जीवन शैली और संघर्षशक्ति का जीवंत चित्रण देखने को मिलता है। कुठालगेट और साई मंदिर तिराहे पर तैयार की गई भित्ति चित्रकारी, मूर्तियां और लोक तत्व पर्यटकों व स्थानीय निवासियों का ध्यान खींच रहे हैं।

इन चौराहों पर गढ़वाल कुमाऊं की पारंपरिक वेशभूषा, लोक नृत्य, ग्रामीण जीवन, पारंपरिक वाद्ययंत्र और ऐतिहासिक प्रतीकों को बेहद सुंदर तरीके से उकेरा गया है। इसका उद्देश्य न केवल शहर के सौंदर्य में वृद्धि करना है, बल्कि आने–जाने वाले लोगों को राज्य की सांस्कृतिक जड़ों से जोड़ना भी है।
प्रशासन का कहना है कि आने वाले समय में दून के अन्य प्रमुख चौराहों को भी इसी प्रकार सांस्कृतिक स्वरूप देते हुए “कल्चरल कॉरिडोर” का रूप दिया जाएगा। इससे जहां स्थानीय संस्कृति को बढ़ावा मिलेगा, वहीं पर्यटन को भी नई दिशा मिलेगी।
कुल मिलाकर, देहरादून के कुठालगेट और साई मंदिर तिराहे अब केवल ट्रैफिक पॉइंट नहीं, बल्कि उत्तराखंड की समृद्ध विरासत की पहचान बन चुके हैं, जो शहर की बदलती छवि और सांस्कृतिक चेतना का प्रतीक हैं।
