दैवीय सम्पद मंडल के परमाध्यक्ष स्वामी असंगानंद सरस्वती का निधन, साधु संतों ने जताया शोक

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ऋषिकेश: दैवीय सम्पद मंडल के परमाध्यक्ष महामंडलेश्वर स्वामी असंगानंद सरस्वती महाराज का 90 वर्ष की आयु में ब्रह्मलीन हो जाना संत समुदाय और आध्यात्मिक जगत के लिए एक बड़ी क्षति माना जा रहा है। वे लंबे समय से अस्वस्थ चल रहे थे। उनके ब्रह्मलीन होने की सूचना के बाद आश्रमों और संत समाज में गहरा शोक व्याप्त हो गया।

स्वामी असंगानंद सरस्वती का पार्थिव शरीर परमार्थ निकेतन, ऋषिकेश में अंतिम दर्शन हेतु रखा गया है, जहाँ सुबह से ही साधु-संतों, भक्तों और श्रद्धालुओं का आना-जाना लगा हुआ है। संत परंपरा और उनके जीवन की शिक्षाओं से जुड़े लोग उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित कर रहे हैं।

परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानंद सरस्वती ने उनके ब्रह्मलीन होने पर गहरा दुख व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि स्वामी असंगानंद सरस्वती महाराज का जाना आध्यात्मिक जगत की अपूर्णीय क्षति है। उन्होंने अपने जीवन को पूरी तरह समाज, संस्कृति और धर्म के उत्थान को समर्पित कर दिया था।

आश्रम के साधु-संतों ने बताया कि महामंडलेश्वर का जीवन अत्यंत सादा, अनुशासित और आध्यात्मिक साधना से भरपूर था। वे सदैव दैवीय सम्पद मंडल की परंपरा को आगे बढ़ाने और युवा पीढ़ी को धर्म, संस्कृति और मानव सेवा का संदेश देने में सक्रिय रहे।

स्वामी असंगानंद सरस्वती महाराज के अंतिम संस्कार से संबंधित पारंपरिक विधियों का पालन किया जा रहा है। संत परंपरा के अनुसार उन्हें जल समाधि दिए जाने की तैयारियाँ भी आश्रम प्रबंधन द्वारा की जा रही हैं।

उनके ब्रह्मलीन होने की खबर से पूरे उत्तर भारत के आश्रमों, मठों और आध्यात्मिक संस्थानों में शोक की लहर है। अनेक संत-महात्माओं ने कहा कि उनका आशीर्वाद, मार्गदर्शन और सेवाभाव आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा देता रहेगा।

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