पौष मास में क्यों नहीं किए जाते मांगलिक कार्य? परंपरा, आस्था और तर्क की पूरी कहानी

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हिंदू पंचांग में पौष मास का विशेष स्थान है। मार्गशीर्ष के बाद आने वाला यह महीना कई धार्मिक मान्यताओं, परंपराओं और खगोलीय कारणों से जुड़ा हुआ है। खास बात यह है कि इस पूरे माह में शादी, गृह प्रवेश, मुंडन, नामकरण जैसे मांगलिक कार्य सामान्यतः नहीं किए जाते। आखिर क्यों? आइए समझते हैं इसके धार्मिक और व्यावहारिक दोनों पहलू

1. सूर्य का दक्षिणायन और देवताओं का विश्राम काल

पौष मास के दौरान सूर्य धनु राशि में रहते हैं। यह अवधि दक्षिणायन कहलाती है, जिसे परंपरा में देवताओं का विश्राम काल माना गया है।माना जाता है कि जब तक सूर्य मकर में प्रवेश नहीं करते और उत्तरायण शुरू नहीं होता, तब तक देवकार्य और मांगलिक कार्यों का फल पूर्ण रूप से प्राप्त नहीं होता।यही कारण है कि मकर संक्रांति से पहले की अवधि को मांगलिक कार्यों के लिए अनुपयुक्त माना गया है।

2. पौष में अक्सर आता है मलमास/खरमास

खगोलशास्त्रीय नियमों के अनुसार जब सूर्य एक ही राशि में पूरा महीना रहते हैं, तो उस महीने को मलमास या खरमास कहा जाता है।मलमास में किसी भी प्रकार का शुभ या मांगलिक कार्य नहीं होता।हालाँकि हर वर्ष ऐसा नहीं होता, लेकिन परंपरा ने पौष को सामान्यतः ऐसे महीनों की श्रेणी में रख दिया है जिसमें शुभ कार्य सीमित होते हैं।

3. मुहूर्तशास्त्र: धनु और मीन राशि में विवाह मुहूर्त वर्जित

मुहूर्त विज्ञान के अनुसार सूर्य के धनु और मीन राशि में स्थित रहने के दौरान विवाह और अन्य मांगलिक क्रियाओं के मुहूर्त निषिद्ध माने गए हैं।पौष का अधिकांश हिस्सा इसी काल में आता है। इसलिए शादी-ब्याह और गृह प्रवेश जैसे कार्य इस अवधि में नहीं करवाए जाते।

4. सामाजिक और सांस्कृतिक कारण

पौष मास ठंड का चरम समय होता है।

• यात्रा कठिन होती थी

• परिवार और रिश्तेदारों का जुटना मुश्किल

• ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि कार्यों की तैयारी

• आर्थिक गतिविधियों की मंदी।

इन कारणों से समाज ने इस माह में मांगलिक कार्यों को सीमित कर दिया। यही सामाजिक व्यवहार धीरे-धीरे परंपरा बन गया।

5. आस्था: तपस्वियों और देवताओं की तपस्या का समय

पौराणिक मान्यताओं में पौष को धार्मिक साधना का माह माना गया है।इस समय देवता, ऋषि और तपस्वी ज्ञान-साधना में लगे रहते हैं।ऐसे में विलास और उत्सव वाले कार्यों से परहेज को शुभ माना गया।-

पौष मास को अशुभ नहीं कहा गया है, लेकिन खगोलीय कारण, धार्मिक मान्यताएं, सामाजिक परिस्थितियाँ और मुहूर्त का विज्ञान इन सभी ने मिलकर इस महीने को मांगलिक कार्यों के लिए कम उपयुक्त बना दिया है।

यही वजह है कि

शादियां, गृह प्रवेश, नामकरण, मुंडन आदि परंपरागत रूप से पौष के बाद, यानी मकर संक्रांति और उत्तरायण के बाद किए जाते हैं।

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